11/28/2017

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जानें रानी पद्मावती का इतिहास
संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती
को लेकर इन दिनों देश का क्षत्रिय समाज उद्वेलित है। उसका कहना है कि फिल्म में रानी पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी के बीच प्रेम प्रसंग दिखाया गया है, जो कि गलत है। संजय लीला भंसाली ने इतिहास के साथ छेड़छाड़ की है। हालांकि फिल्म में ऐसा कुछ दिखाया गया है, इस बारे में फिल्म को देखे बिना कुछ भी कहना संभव नहीं है। फिर भी ऐसा कुछ दिखाया गया है तो यह अकाल्पनिक ही लगता है, क्यों कि रानी पद्मावती या अलाउद्दीन खिलजी कोई गली मुहल्ले के युवक या युवती नहीं थे, जो अक्सर एक दूसरे से मिलते रहे हों। उन्होंने कभी एक दूसरे को देखा था या आपस में कभी मिले थे, इसका भी उल्लेख नहीं मिलता है। फिर दोनों में प्रेम प्रसंग कैसे हो सकता है। हालांकि पद्मावती के बारे में इतिहास में ज्यादा कुछ नहीं मिलता है, पर जो भी है उससे यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी के बीच ऐसा कुछ था, जिस पर रोमांस का तड़का लगाया जा सके। रानी पद्मिनी का उल्लेख सन 1540 में ‘मलिक मोहम्मद ज्यासी द्वारा लिखे गए महाकाव्य में पाया गया है। पद्मिनी, चित्तौड़ की रानी थीं। पद्ममी को पद्मावती के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि यह एक महान 13 वीं -14 वीं सदी की भारतीय रानी (रानी) है। यद्यपि कोई ऐतिहासिक सबूत नहीं है कि पद्मिनी अस्तित्व में है और अधिकांश आधुनिक इतिहासकारों ने 13 वीं सदी के रानी पद्मावती के अस्तित्व को खारिज कर दिया है। अभी तक तो यही पढ़ने सुनने में आता रहा है कि भारतीय इतिहास के पन्नों में अत्यंत सुंदर और साहसी रानी; रानी पद्मावती का उल्लेख है। रानी पद्मावती के पिता सिंघल प्रांत (श्रीलंका) के राजा थे। उनका नाम गंधर्वसेन था। और उनकी माता का नाम चंपावती था। उनका विवाह चित्तौड़ के राजा रावल रतन सिंह के साथ हुआ था। इतिहास के ज्ञात स्रोतों के अनुसार चित्तौड़ राज्य में राघव चेतन नाम का संगीतकार बहुत प्रसिद्ध था। जिसे महाराज रावल रत्न सिंह बहुत मानते थे। उसे अपने राज दरबार में विशेष स्थान भी दिया था। ऐसा कहा जाता है की राघव चेतन तांत्रिक भी था। अपनी इस आसुरी प्रतिभा का उपयोग शत्रु को परास्त करने और अपने कार्य सिद्ध करने में करता था। एक दिन राघव चेतन जब अपना कोई तांत्रिक कार्य कर रहा था तब उसे रंगे हाथों पकड़ लिया गया और राजदरबार में राजा रावल रत्न सिंह के समक्ष पेश कर दिया गया। राजा ने राघव का मुंह काला करा कर गधे पर बैठा कर देश निकाला दे दिया। इसके बाद राघव चेतन दिल्ली चला गया और अलाउद्दीन खिलजी को चित्तौड़ राज्य की सैन्य शक्ति, चित्तौड़ गढ़ की सुरक्षा और वहां की सम्पदा से जुड़ा एक-एक राज़ खोल दिया। राजा रावल रत्न सिंह की धर्म पत्नी रानी पद्मावती के अद्भुत सौन्दर्य का बखान भी किया। उसने इन सबके माध्यम से उसने अलाउद्दीन को चित्तौड़ पर आक्रमण के लिए उकसाया। इसके माध्यम से वह राजा रतन सिंह से प्रतिशोध लेना चाहता था। इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी ने भी चित्तौड़ राज्य पर आक्रमण करने का मन बना लिया और अपनी एक विशाल सेना चित्तौड़ राज्य की और रवाना कर दी। अलाउद्दीन खिलजी की सेना चित्तौड़ तक पहुंच तो गयी पर चित्तौड़ के किले की अभेद्य सुरक्षा भेद कर अंदर नहीं जा पायी। इस पर किले के आस पास अपने पड़ाव डाल लिए। बाद में अलाउद्दीन खिलजी नें चित्तौड़ किले के अंदर राजा रावल रतन सिंह के पास एक संदेश भिजवाया कि वह रानी पद्मावती की सुंदरता का बखान सुन कर उनके दीदार के लिए दिल्ली से यहां तक आया है और एक बार रानी पद्मावती को दूर से देखने का अवसर चाहता है। संदेश में यह भी कहा कि वह पद्मावती को बहन समान मानता है। अलाउद्दीन खिलजी की इस अजीब मांग को राजपूत मर्यादा के विरुद्ध बता कर राजा रावल रतन सिंह नें ठुकरा दिया। पर फिर भी अलाउद्दीन खिलजी ने रानी पद्मावती को बहन समान बताया था, इसलिए उस समय एक रास्ता निकाला गया। पर्दे के पीछे रानी पद्मावती सीढ़ियों के पास से गुज़रेंगी और सामने एक विशालकाय शीशा रखा जाएगा, जिसमें रानी पद्मावती का प्रतिबिंब अलाउद्दीन खिलजी देख सकता है। इस तरह राजपूतना मर्यादा भी भंग ना होगी और अलाउद्दीन खिलजी की बात भी रह जाएगी। अलाउद्दीन इसके लिए राजी हो गया। शर्त अनुसार चित्तौड़ के महाराज ने अलाउद्दीन खिलजी को आईने में रानी पद्मावती का प्रतिबिंब दिखला दिया और फिर अलाउद्दीन खिलजी की पूरी मेहमान नवाज़ी के साथ चित्तौड़ किले के बाहर उसे उसकी सेना तक खुद छोड़ने गए। इसी अवसर का लाभ उठाकर अलाउद्दीन खिलजी ने राजा रावल रतन सिंह को बंदी बना लिया और किले के बाहर अपनी छावनी में कैद कर दिया। इसके बाद संदेश भिजवा दिया गया कि अगर महाराज रावल रत्न सिंह को जीवित देखना है तो रानी पद्मावती को फौरन अलाउद्दीन खिलजी की खिदमद में किले के बाहर भेज दिया जाये।
चित्तौड़ राज्य के महाराज को अलाउद्दीन खिलजी की गिरफ्त से सकुशल मुक्त कराने के लिये रानी पद्मावती, गौरा और बादल नें मिल कर एक योजना बनाई। योजना यह थी कि किले के बाहर मौजूद अलाउद्दीन खिलजी तक यह पैगाम भिजवाया कि रानी पद्मावती समर्पण करने के लिए तैयार है और पालकी में बैठ कर किले के बाहर आने को राज़ी है। और फिर पालकी में रानी पद्मावती और उनकी सैकड़ों दासियों की जगह नारी भेष में लड़ाके योद्धा भेज कर बाहर मौजूद दिल्ली की सेना पर आक्रमण कर दिया जाए और इसी अफरातफरी में राजा रावल रत्न सिंह को अलाउद्दीन खिलजी की कैद से मुक्त करा लिया जाए। अलाउद्दीन इसके लिए मान गया। जब चित्तौड़ किले के दरवाज़े एक के बाद एक खुले तब अंदर से एक की जगह सैकड़ों पालकियां बाहर आने लगीं। जब यह पूछा गया की इतनी सारी पालकियां क्यूं साथ हैं तब अलाउद्दीन खिलजी को यह उत्तर दिया गया की यह सब रानी पद्मावती की खास दासियों का काफिला है जो हमेशा उनके साथ जाता है। इस तरह चित्तौड़ का एक पूरा लड़ाकू दस्ता नारी भेष में किले के बाहर आ पहुंचा। उन्होंने अलाउद्दीन के सिपाहियों पर आक्रमण कर दिया। इस बीच बादल नें राजा रावल रतन सिंह को बंधन मुक्त करा लिया और उन्हे अलाउद्दीन खिलजी के अस्तबल से चुराये हुए घोड़े पर बैठा कर सुरक्षित चित्तौड़ किले के अंदर पहुंचा दिया। इस लड़ाई मे राजपूत सेनापति गौरा और पालकी के संग बाहर आए सभी योद्धा शहीद हो गए। इस घटना से अलाउद्दीन खिलजी झल्ला उठा। उसने उसी वक्त चित्तौड़ किले पर आक्रमण कर दिया, पर वे उस अभेद्य किले में दाखिल नहीं हो सके। तब उन्होंने किले में खाद्य और अन्य ज़रूरी चीजों के खत्म होने तक इंतज़ार करने का फैसला लिया। कुछ दिनों में किले के अंदर खाद्य आपूर्ति समाप्त हो गई और वहाँ के निवासी किले की सुरक्षा से बाहर आ कर लड़ मरने को मजबूर हो गए। अंत में रावल रत्न सिंह नें द्वार खोल कर आर- पार की लड़ाई लड़ने का फैसला कर लिया और किले के दरवाज़े खोल दिए। किले की घेराबंदी कर के राह देख रहे मौका परस्त अलाउद्दीन खिलजी ने और उसकी सेना नें दरवाज़ा खुलते ही तुरंत आक्रमण कर दिया।
इस भीषण युद्ध में राजा रावल रत्न सिंह वीर गति हो प्राप्त हुए और उनकी पूरी सेना भी हार गई। अलाउद्दीन खिलजी नें एक-एक कर के सभी राजपूत योद्धाओं को मार दिया और किले के अंदर घुसने की तैयारी कर ली। युद्ध में राजा रावल रतन सिंह के मारे जाने और चित्तौड़ सेना के समाप्त हो जाने की सूचना के बाद रानी पद्मावती राजपूतना रीति अनुसार वहां की सभी महिलाओं के साथ जौहर करने का फैसला लिया। जौहर की रीति निभाने के लिए नगर के बीच एक बड़ा सा अग्नि कुंड बनाया गया। जिसमें रानी पद्मावती समेत सभी महिलाएं सती हो गई। इस तरह रानी पद्मिनी ने आग में कूदकर जान दे दी, लेकिन अपनी आन-बान पर आंच नहीं आने दी।
रानी पद्मावती के इस इतिहास को सत्य असत्य घोषित करने की इतिहासकारों की एक लंबी श्रृंखला है। सभी लोग अपने अपने ढंग से अपने शोध के आधार पर तर्क भी देते रहे हैं, पर फिल्म के माध्यम से उभरे विवाद ने नई बहस को जन्म दे दिया है। ऐसे में बहुत ठोस ऐतिहासिक आधार भले न मिले, पर उसे तर्क की कसौटी पर खरा जरूर उतरना पड़ेगा। देखना यही है कि यह ऊंट किस करवट बैठता है, क्योंकि एक तरफ जहां लोग अभी तक इतिहास से प्राप्त तथ्यों और अपनी गढ़ी मान्यताओं के साथ भावनात्मक रूप से मुद्दे से जुड़े हैं, वहीं दूसरी ओर विशुद्ध व्यावसायिकता है। ऐसे में संजय लीला भंसाली इस आग की दरिया को कैसे पार कर पाएंगे यह तो समय ही बताएगा।


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