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भारत में नागरिकता संशोधन कानून बन चुका
है। जिसे लेकर विरोध हो रहा है। मुस्लिम वर्ग खास तौर से विरोध कर रहा है। उसका
कहना है कि संशोधित कानून में धर्म के आधार पर वरीयता दी गई है, जो कि भारत के
धर्मनिरपेक्ष प्रकृति के खिलाफ है। यह भारत के संविधान की मूल आत्मा के खिलाफ है। यह
समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है। ऐसे में सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि
आखिर नागरिका संशोधन कानून में क्या है। दरअसल बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान
के छह अल्पसंख्यक समुदायों ( हिंदू, जैन, सिख, पारसी, बौद्ध और ईसाई) से संबंध
रखने वाले लोगों को भारतीय नागरिकता देने का कानून है। महत्वपूर्ण बात यह है कि
अभी तक भारत में कानून के मुताबिक किसी भी व्यक्ति को भारतीय नागरिकता प्राप्त करने
के लिए भारत में कम से कम 11 वर्ष रहना जरूरी है। अब इस अवधि को इन छह अल्पसंख्यक
समुदायों के लिए घटाकर छह साल कर दिया गया है। यानी कि इस समुदाय के लोग यदि भारत
में छह साल से रह रहे हैं तो वह नागरिकता प्राप्त के करने के लिए पात्र हो जाते
हैं। कानून में इस संशोधन से भारत में
अवैध तरीके से दाखिल हुए इन छह धर्मों के लोगों को भारतीय नागरिकता मिलने का
रास्ता साफ हो गया है। इससे उन्हें उनके देश में डिपोर्ट करने की जरूरत नहीं
रहेगी।
अब सवाल यह है कि आखिर नागरिकता संशोधन
कानून की जरूरत क्यों पड़ी? अलग-अलग लोगों का इस बारे में अलग-अलग
विचार है। सरकार का कहना है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में अल्पसंख्ययक
समुदायों का धार्मिक आधार पर उत्पीड़न बढ़ गया था। इससे पहले महात्मा गांधी से
लेकर अब तक तमाम बड़े नेताओं का विचार यही रहा है कि इन देशों के अल्पसंख्यक
समुदाय को भारत में नागरिकता देने में कोताही नहीं करनी चाहिए। चूंकि इन
अल्पसंख्यक समुदायों का इन दिनों इन देशों में कुछ ज्यादा ही धार्मिक आधार पर
उत्पीड़न होने लगा था, इसलिए सरकार को इन्हें जल्द से जल्द नागरिकता देने की
जल्दबाजी थी, क्योंकि पुराना कानून कहता है कि इसके लिए कम से कम भारत में 11 साल
रहना चाहिए, नए कानून में इस अवधि को घटाकर छह साल कर कर दिया गया। यानी के इन छह
अल्पसंख्यक समुदाय के लोग यदि भारत में छह साल से भी हों तो उन्हें नागरिकता दे दी
जाएगी। कायदे से किसी भारतीय नागरिक को इससे कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। क्योंकि
यह नागरिकता देने का कानून है लेने का नहीं। लेकिन विरोध इसलिए हो रहा है कि इसके
माध्यम से सरकार एनआरसी और एनपीआर की पृष्ठभूमि तैयार कर रही है। इसलिए इसका विरोध
करना जरूरी है। ऐसे में कुछ लोगों का यह भी कहना है कि सरकार ने नागरिकता कानून
में संशोधन की बात अपने घोषणापत्र में की थी, इसलिए उसने इस पर अमल किया। एक और
तर्क दिया जा रहा है कि असम में एनआरसी लागू है। जिसके कारण लाखों हिंदू भारत में
घुसपैठिया साबित हो गए। उन्हें भारत की नागरिकता देने के लिए नागरिकता कानून में
संशोधन करना पड़ा।
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