1/23/2019

जानें गणतंत्र दिवस से जुड़ी कुछ रोचक बातें


26 जनवरी को गणतंत्र दिवस भी कहा जाता है, क्योंकि इसी तारीख को सन् 1950 में हमारे देश में संविधान लागू किया गया था। भारत के संविधान को पूरा करने के लिए लगभग 2 वर्ष, 11 महीने और 18 दिन लग गए थे। हमारे नेताओं ने अन्य देशों के संविधानों के सर्वोत्तम पहलुओं को ले लिया।
 स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे की अवधारणा फ्रांसीसी संविधान से ली हुई है, जबकि पंचवर्षीय योजनाएं यूएसएसआर संविधान से हमें मिलीं हैसत्यमेव जयते (सबसे बड़े भारतीय आदर्श वाक्य में से एक) मुंडका उपनिषद, अथर्ववेद से लिया गया है। साल 1911 में पहली बार आबिद अली ने इसे हिंदी भाषा में अनुवाद किया था। जन गण मन (राष्ट्रीय गान) का प्रथम साल 1911 में आबिद अली द्वारा हिंदी भाषा में अनुवाद किया गया था, जिसे बाद में साल 1950 में 24 जनवरी को आधिकारिक तौर पर भारत के राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया था। लगभग दो लाख लोग गणतंत्र दिवस की परेड देखने पहुंचते हैं। परेड के दौरान राष्ट्रपति को 21 तोपों की सलामी देने की परंपरा है। भारतीय सेना की सात तोपों से यह सलामी दी जाती है, जिन्हें '25 पाउंडर्स' कहा जाता है। राष्ट्रगान शुरू होते ही पहली सलामी दी जाती है और ठीक 52 सेकंड बाद आखिरी सलामी दी जाती है। 26 जनवरी की परेड के दौरान हर साल किसी ना किसी देश के प्रधानमंत्री/राष्ट्रपति/शासक को अतिथि के रूप में बुलाया जाता है। 26 जनवरी 1950 को आयोजित पहले परेड में अतिथि के रूप में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति डॉ. सुकर्णो को आमंत्रित किया गया था। जबकि 1955 में राजपथ पर आयोजित पहले परेड में अतिथि के रूप में पाकिस्तान के गवर्नर जेनरल मलिक गुलाम मोहम्मद को आमंत्रित किया गया था। दक्षिण अफ्रीका के पांचवें और वर्तमान राष्ट्रपति मैटामेला सिरिल रामफोसा, भारत के 70 वें गणतंत्र दिवस 2019 के मुख्य अतिथि होंगे। परेड से कुछ दिन पहले ही इंडिया गेट और आसपास के क्षेत्र को एक अभेद्य किले में बदल दिया जाता है। परेड के आयोजन की औपचारिक जिम्मेवारी रक्षा मंत्रालय की होती है, जिसमें कम से कम 70 विभिन्न संगठन उसकी मदद करते हैं। आइए जानते हैं गणतंत्र दिवस की परेड से जुड़े कुछ रोचक तथ्य-
1. हर वर्ष 26 जनवरी की परेड का आयोजन नई दिल्ली स्थित राजपथ पर किया जाता है, लेकिन 1950 से लेकर 1954 तक परेड का आयोजन स्थल राजपथ नहीं था। इन वर्षों के दौरान 26 जनवरी की परेड का आयोजन क्रमशः इरविन स्टेडियम (अब नेशनल स्टेडियम), किंग्सवे, लाल किला और रामलीला मैदान में किया गया था। 1955 से राजपथ 26 जनवरी की परेड का स्थायी आयोजन स्थल बन गया। उस समय राजपथ को किंग्सवेके नाम से जाना जाता था।
2. 26 जनवरी की परेड की शुरुआत राष्ट्रपति के आगमन के साथ होती है। सबसे पहले राष्ट्रपति के घुड़सवार अंगरक्षकों द्वारा तिरंगे को सलामी दी जाती हैउसी समय राष्ट्रगान बजाया जाता है और 21 तोपों की सलामी दी जाती है लेकिन क्या आप जानते हैं कि वास्तव में वहां 21 तोपों द्वारा फायरिंग नहीं की जाती है? बल्कि भारतीय सेना के 7 तोपों, जिन्हें “25 पाउंडर्स कहा जाता है, द्वारा तीन-तीन राउंड की फायरिंग की जाती है। रोचक बात यह है तोप द्वारा की जाने वाली फायरिंग का समय राष्ट्रगान के समय से मेल खाता है। पहली फायरिंग राष्ट्रगान के शुरुआत के समय की जाती है, जबकि अंतिम फायरिंग ठीक 52 सेकण्ड के बाद की जाती है। इन तोपों को 1941 में बनाया गया था और सेना के सभी औपचारिक कार्यक्रमों में इसे शामिल किया जाता है।
3परेड के दिन परेड में भाग लेने वाले सभी दल सुबह 2 बजे ही तैयार हो जाते हैं और सुबह 3 बजे तक राजपथ पर पहुंच जाते हैं, लेकिन परेड की तैयारी पिछले साल जुलाई में ही शुरू हो जाती है, जब सभी दलों को परेड में भाग लेने के लिए अधिसूचित किया जाता है। अगस्त तक वे अपने संबंधित रेजिमेंट केन्द्रों पर परेड का अभ्यास करते हैं और दिसंबर में दिल्ली आते हैं। 26 जनवरी की परेड में औपचारिक रूप से भाग लेने से पहले तक विभिन्न दल लगभग 600 घंटे तक अभ्यास कर चुके होते हैं।
4. परेड में शामिल होने वाले टैंकों और बख्तरबंद गाड़ियों तथा भारत की सामरिक शक्ति को प्रदर्शित करने वाले अत्याधुनिक उपकरणों के लिए इंडिया गेट परिसर के भीतर एक विशेष शिविर बनाया जाता है। प्रत्येक हथियार की जांच एवं रंग-रोगन का कार्य 10 चरणों में किया जाता है।
526 जनवरी की परेड के शुरुआत से लेकर अंत तक हर गतिविधि सुनियोजित होती है। अतः परेड के दौरान छोटी-से-छोटी गलती या कुछ ही मिनटों के विलम्ब के कारण भारी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
6परेड में भाग लेने वाले प्रत्येक सैन्यकर्मी को चार स्तरीय सुरक्षा जांच से गुजरना पड़ता है। इसके अलावा उनके द्वारा लाए गए हथियारों की गहन जांच की जाती है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनके हथियारों में जिन्दा कारतूस तो नहीं है।
7परेड में शामिल सभी झांकियां 5 किमी/घंटा की गति से चलती हैं, ताकि गणमान्य व्यक्ति इसे अच्छे से देख सकें। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इन झांकियों के चालक एक छोटी सी खिड़की के माध्यम से वाहनों को चलाते हैं।
8परेड का सबसे रोचक हिस्सा फ्लाईपास्टहोता है। इस फ्लाईपास्ट की जिम्मेवारी पश्चिमी वायुसेना कमान के पास होती है, जिसमें 41 विमान भाग लेते हैं। परेड में शामिल होने वाले विभिन्न विमान वायुसेना के अलग-अलग केन्द्रों से उड़ान भरते हैं और तय समय पर राजपथ पर पहुंच जाते हैं।
9. प्रत्येक गणतंत्र दिवस परेड में ईसाई गीत Abide with Me (मेरे पास रह)” निश्चित रूप से बजाया जाता है, क्योंकि यह महात्मा गांधी का पसंदीदा गीत था।
10परेड में भाग लेने वाले सेना के जवान स्वदेश में निर्मित “इंसास (INSAS)” राइफल लेकर चलते हैं, जबकि विशेष सुरक्षा बल के जवान ईजराइल में निर्मित “तवोर (Tavor)” राइफल लेकर चलते हैं।

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