सोर्स - गूगल इमेजेज |
संस्कृति मंत्रालय ने एक बयान जारी किया है, जिसमें नरेन्द्र मोदी ने सुझाव दिया है कि आध्यात्मिक नेता श्री अरबिंदो की 150वीं जयंती के अवसर पर उनके जीवन और दर्शन के विविध पहलुओं पर देश के 150 विश्वविद्यालयों को पेपर्स लिखने चाहिए। श्री अरबिंदो का जन्म 15 अगस्त, 1872 को कोलकाता में हुआ था। जारी बयान के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने श्री अरबिंदो की 150वीं जयंती मनाने के लिए गठित उच्चस्तरीय समिति की पहली बैठक की अध्यक्षता की। इस बैठक में सचिव (संस्कृति) गोविंद मोहन ने कार्यक्रमों की रूपरेखा प्रस्तुत की। साथ ही समिति के सदस्यों के सलाह भी मांगी। मालूम हो इस समिति में 53 लोग शामिल हैं। जिनमें से 38 भौतिक या वर्चुअल रूप से बैठक में मौजूद थे। बयान के मुताबिक, प्रधानमंत्री ने कहा कि दुनिया का आध्यात्मिक नेता होने के नाते दुनिया में आध्यात्मिकता के क्षेत्र में योगदान देना भारत की जिम्मेदारी है। इतना ही नहीं, उन्होंने श्री अरबिंदो के जयंती कार्यक्रमों को राष्ट्रीय युवा दिवस पर पुडुचेरी से शुरू करने का सुझाव दिया।
जानिए कौन थे अरबिंदो घोष
श्री अरबिंदो या अरविंद
घोष या श्री अरविंद का जन्म 15 अगस्त 1872 को कोलकाता में हुआ था और निधन पांच दिसंबर 1950 को हुआ था। इनके पिता एक चिकित्सक थे। युवा अवस्था
में ये स्वतन्त्रता संग्राम में क्रान्तिकारी के रूप में शामिल हुए, लेकिन बाद में योगी बन गए और इन्होंने पुडुचेरी
में आश्रम स्थापित किया। उन्होंने वेद, उपनिषद ग्रंथों आदि पर टीका लिखी। योग साधना पर मौलिक ग्रंथ लिखे। पूरे विश्व के
दर्शन शास्त्र पर उनका काफी प्रभाव रहा। वर्तमान में उनकी साधना पद्धति के अनुयायी
सभी देशों में मिल जाएंगे। वह कवि और गुरु भी थे। अरबिंदो के पिता डॉक्टर कृष्णधन घोष
ने उन्हें उच्च शिक्षा के लिए महज सात वर्ष की उम्र में ही उन्हें इंग्लैंड भेज दिया।
जहां उन्होंने केवल 18 वर्ष की आयु में
ही आईसीएस की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी। इसके साथ ही उन्होंने अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच, ग्रीक एवं इटैलियन
भाषाओँ में भी निपुणता प्राप्त की थी। लेकिन देशभक्ति ने जोर मारा तो उन्होंने घुड़सवारी
की परीक्षा देने से इनकार कर दिया और राष्ट्र-सेवा करने का प्रण ले लिया। इनकी प्रतिभा
से बड़ौदा नरेश काफी प्रभावित थे। उन्होंने अरबिदों को अपनी रियासत में शिक्षा शास्त्री
के रूप में नियुक्त कर लिया। 1896 से 1905 तक उन्होंने बड़ौदा रियासत में राजस्व अधिकारी
से लेकर बड़ौदा कालेज के फ्रेंच अध्यापक और उपाचार्य रहने तक रियासत की सेना में क्रांतिकारियों
को प्रशिक्षण भी दिलाया था। हजारों युवकों को उन्होंने क्रांति की दीक्षा दी थी। राजस्व
विभाग में कार्य करते समय उन्होंने जो विश्व की प्रथम आर्थिक विकास योजना बनाई। उसका
कार्यान्वयन करके बड़ौदा राज्य देशी रियासतों में अन्यतम बन गया था। लार्ड कर्जन के
बंग-भंग की योजना के खिलाफ अरबिंदो घोष ने आंदोलन में बढ़कर भाग लिया।
स्वतंत्रता आंदोलन
में इनकी गतिविधियों के कारण 2 मई 1908 को चालीस युवकों के साथ उन्हें गिरफ्तार कर लिया
गया। उन्हें एक वर्ष तक अलीपुर जेल में कैद रखा गया।| अलीपुर जेल में ही उन्हें हिन्दू धर्म एवं हिन्दू-राष्ट्र विषयक
अद्भुत आध्यात्मिक अनुभूति हुई। जेल से छूटने के बाद उन्होंने राजनीति से संन्यास ले
लिया और पुडुचेरी में आश्रम स्थापित कर लिया।
श्री अरबिंदों के
दर्शन का केंद्र बिंदु सर्वशक्तिमान परब्रह्म है। वही आत्मा है। प्रकृति और उसकी चेतनाशक्ति
है। सारा विश्व ब्रह्म का ही रूप है। पाप और पुण्य मनुष्य की नैतिक सीमाओं का बंधन
है। वे पुनर्जन्म में विश्वास रखते थे। योग द्वारा अलौकिक चेतना तक पहुंचा जा सकता
है, यह उनका दर्शन था। उन्होंने
सनातन धर्म का प्रबल समर्थन किया, जिसे ज्ञान,
भक्ति तथा कर्म का व्यापक व उदार दर्शन माना। वे
मानवतावादी दार्शनिक थे। वे पूंजीवाद के विरोधी और समाजवाद के समर्थक थे। वे कांग्रेस
तथा उदारवादियों के कटु आलोचक भी थे। पाश्चात्य सभ्यता में रहते हुए भी वे प्राचीन
भारतीय हिंदू सभ्यता व संस्कृति के उपासक थे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।