9/21/2020

UP में बनेगी Film City, रोजगार की आएगी बहार

 

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उत्तर प्रदेश के CM Yogi Adityanath ने UP में फिल्म सिटी (Film City)  बनाने का ऐलान किया है। यह फिल्म सिटी (Film City) उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर जिले में बनाई जानी है। इसके लिए यमुना प्राधिकरण औऱ ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने प्रस्ताव भी दे दिया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) का दावा है कि यह देश की सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री होगी। फिल्म सिटी बन जाने से राज्य में बड़ी फिल्मों और वेबसीरीज का निर्माण हो सकेगा। इसके लिए सारा इंफ्रास्ट्रक्चर मुहैया कराया जाएगा। हालांकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) से पहले पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश सिंह यादव ने भी ऐसा प्रयास किया था। इसके लिए अच्छा खासा पैसा भी खर्च कर रहे थे, लेकिन उनकी सरकार जाने के बाद उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद इस काम में औऱ तेजी आ गई। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) ने खुद ही इसमें काफी दिलचस्पी ली।  अब वह एकाध दिन में फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों और निवेशकों से वार्ता भी करने वाले हैं।

उत्तर प्रदेश में Film City बनाने की पहल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) ने यूपी ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2018 में ही कर दी थी। इसे ध्यान में रखते हुए ही उत्तर प्रदेश में फिल्म उद्योग के विकास व फिल्मों को लोकप्रिय बनाने के लिए महत्वाकांक्षी योजनाएं तैयार की गई हैं। अब योगी सरकार ने उससे भी आगे बढ़कर इसे अपनी प्राथमिकता सूची में डाल लिया है। 

उत्तर प्रदेश में फिल्म निर्माण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से राज्य सरकार प्रदेश में मूलभूत ढांचा तैयार करने के लिए फिल्म कोष की स्थापना करेगी। प्रदेश मंत्रिमण्डल द्वारा पारित औद्योगिक निवेश एवं रोजगार सृजन नीति के अनुसार, 'राज्य सरकार एक फिल्म कोष बनाने की इच्छुक है, इसका प्रयोग फिल्मों, वृत्तचित्रों तथा क्षेत्रीय फिल्में बनाने के लिए जरूरी ढांचा तैयार करने में किया जाएगा। ' उत्तर प्रदेश को फिल्म निर्माण के प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित करने के लिए राज्य सरकार प्रदेश में फिल्म की शूटिंग के अनुकूल माहौल बनाने तथा फिल्म निर्माण से सम्बन्धित तमाम गतिविधियों के सम्पूर्ण विकास के प्रति इच्छुक है। नीति में कहा गया है कि राज्य में फिल्म निर्माण तथा शूटिंग के लिए जरूरी ढांचा, जैसे कि स्टूडियो या प्रोसेसिंग लैब इत्यादि विकसित किए जाएंगे और सरकार फिल्म सिटी बनाने में मदद करेगी। साथ ही वह अन्य जरूरी ढांचा बनाने में भी सहयोग करेगी। नई नीति में मल्टीप्लेक्स निर्माण को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न वित्तीय प्रोत्साहन दिए गए हैं। साथ ही बंद हो चुके या नुकसान में चल रहे सिनेमाघरों को फिर से संचालित करने का इरादा जाहिर किया गया है। राज्य सरकार सिनेमाघर मालिकों को बिजली उत्पादन संयंत्र स्थापित करने के लिए भी प्रोत्साहित करेगी। इन संयंत्रों में बनने वाली बिजली को विद्युत कर से मुक्त रखा जाएगा। फिल्म उद्योग के विकास के लिये प्रतिभाशाली कलाकारों तथा तकनीकी कामगारों को समुचित प्रशिक्षण दिए जाने की जरूरत को महसूस करते हुए राज्य सरकार प्रदेश में फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान स्थापित करने के लिए केंद्र सरकार के साथ सहयोग करेगी। निजी क्षेत्र को भी प्रशिक्षण केंद्र खोलने के लिये प्रोत्साहित किया जाएगा। प्रदेश में फिल्म उद्योग के विकास और निर्माण की दिशा बदल रही है। इसे इस बात से भी समझा जा सकता है कि गत दिनों फिल्म निर्माता और निर्देशक मधुर भंडारकर ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की और सरकार की नई नीतियों की वजह से प्रदेश में आ रहे सकारात्मक बदलाव और फिल्म उद्योग आदि को बढ़ावा देने पर चर्चा की। प्रदेश में फिल्म सिटी के निर्माण पर भी बात हुई, जिसे सीएम ने जल्द पूरा करने का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश सांस्कृतिक और ऐतिहासिक लिहाज से काफी संपन्न है, फिल्म उद्योग से जुड़े लोगों को इन पर फिल्म बनानी चाहिए, साथ ही इन जगहों पर शूटिंग करनी चाहिए, इससे फिल्म उद्योग को तो लाभ होगा ही, साथ ही प्रदेश के ये स्थान पर्यटकों में और लोकप्रिय होंगे।

आखिर क्यों जरूरी है फिल्म उद्योग को बढ़ावा

सवाल है कि प्रदेश में फिल्म उद्योग के विकास और फिल्मों के निर्माण को बढ़ावा देने की ऐसी क्या जरूरत आ पड़ी, जिसके लिए सरकार पूरी जोर शोर से तैयारी में लग गई है। फिल्म निर्माण और उसकी प्रक्रिया संगीत नाटक और ललित कला के मार्ग से होती हुई आगे जाती है क्योंकि किसी भी फिल्म निर्माण में संगीत नाटक और ललित कला के निहित गुण समाहित होते हैं। उत्तर प्रदेश में हमारी संगीत नाटक अकादमी और ललित कला अकादमी बन्दर बांट, भाई-ंउचयभतीजावाद और अनुभवहीन अफसरों की संकुचित सोच के दायरे से बाहर नहीं निकल पा रही है। योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इस दृष्टि से दो बड़े फैसले किए हैं। पहला उत्तर उत्तर प्रदेश में फिल्म विकास परिषद का गठन करना दूसरा उत्तर प्रदेश को फिल्म उद्योग का दर्जा देकर उत्तर प्रदेश के किसी क्षेत्र में फिल्म नगरी की स्थापना करना। ऐसा ही एक प्रयास सालों पहले दिल्ली से यूपी के नोएडा क्षेत्र में किया गया और इसे नाम दिया गया फिल्म सिटी का। पहले इस पर बात करना जरूरी होगा। यहां 15-20 स्टूडियो बनाये गये, लेकिन अधिकांश कई सालों तक बन्द रहे। जब भारत में सैटेलाइट युग का आगमन हुआ। तो न्यूज चैनल्स ने इन्हें अपना व्यावसायिक आसरा बनाया, लेकिन फिल्म सिटी का जो सपना कांग्रेस की वीर बहादुर सिंह सरकार ने देखा था। वह फिल्म के प्रति आकर्षण का केन्द्र बनती प्रतिभाओं के साथ धोखे के अलावा कुछ भी साबित नहीं हुआ। अब नई सरकार इस दिशा में फिर प्रयत्नशील दिखाई दे रही है। पहली बात फिल्म नगरी की तो उसके लिए सरकार को मुम्बई के फिल्म उद्योग में जो प्रतिभाएं उत्तर प्रदेश की स्थापित हैं, के माध्यम से संयुक्त रूप से प्रयास करना चाहिए। सरकार का काम उन्हें वित्तीय सुविधा और जगह आदि उपलब्ध कराना होगा। लेकिन उनके काम में दखल से सरकारी हस्तक्षेप को रोकना अर्था्त उन्हें पूरी तरह से स्वतंत्रता देना पहला ध्येय होना चाहिए। सबसे बड़ी बात ये है कि फिल्म नगरी के लिए आगरा, इलाहाबाद या वाराणसी में से किसी एक स्थान को चुनना चाहिए। ताकि यहां कि स्थानीय प्रतिभाओं को महत्व मिल सके। केवल स्टूडियो भर खोल देने से उत्तर प्रदेश में फिल्मान्दोलन को उचित दिशा नहीं मिलेगी। इसके लिए विधिवत एक बड़ा ढांचा खड़ा करने की जरूरत है। इस क्रम में एक बड़ी प्रयोगशाला की स्थापना जरूरी है। जिसमें डबिंग और साउण्ड स्टूडियो का होना एक बड़ी अनिवार्यता है। यदि फिल्म निर्माता फिल्म बना भी लें तो उन्हें इसके लिए मुम्बई की तरफ न देखना पड़े। इसके लिए तकनीशियनों की एक बड़ी फौज खड़ी करना सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। फिर सरकार को उन निर्माताओं और वितरकों को आकर्षित करना जरूरी होगा जो फिल्म उद्योग में पहले से सक्रिय हैं। इसके लिए ऐसा कुछ दिखना चाहिए जिससे लोग इस प्रदेश में अपने पैर जमाने की कोशिश करें। योगी सरकार इन सारी समस्याओं पर गौर करते हुए ही आगे बढ़ रही है। एक छोटे प्रयास के लिए बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता अनुपम खेर ने एक कोशिश सालों पहले की थी। अनुपम मूल रूप से उत्तर प्रदेश के नहीं हैं लेकिन मुम्बई मैं पैर जमाने का रास्ता उन्होंने वाया लखनऊ ही चुना। उस समय अनुपम भारतेन्दु नाट्य अकादमी में रह रहे थे। इसी दौरान वह स्वदेश बन्धु के दो नाटकों मदर और आला अफसर के सिलसिले में मुम्बई आये। वहीं उनकी मुलाकात अपने पुराने साथी कुलभूषण खरबन्दा से हुई और खरबन्दा ने उन्हें महेश भट्ट से मिलवा दिया। उसके बाद अनुपम ने महेश भट्ट की सारांश और डैडी फिल्में की। उसके करीब पन्द्रह साल बाद अनुपम खेर को भातेन्दु नाट्य अकादमी का अध्यक्ष बनाया गया। उसी दौरान अनुपम खेर ने भारतेन्दु नाट्य अकादमी में फिल्म प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना का प्रस्ताव दिया, लेकिन कुछ लोगों ने यह कहकर इसकी हवा निकाल दी कि नाट्य और फिल्म संस्थान एक छत के नीचे नहीं चल सकते।

दूसरा उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद के गठन की बात की जा रही है, तो सवाल यह उठता है कि उसका आकार और रूप क्या होगा? यदि सरकारी तंत्र और संघ के लोगों को रेवड़ियां बांटना उसका उद्देश्य है, तो यह एक सफेद हाथी से ज्यादा कुछ साबित नहीं होगा। दरअसल फिल्म विकास परिषद का ध्येय निर्माताओं को उत्तर प्रदेश में आकर्षित करना और उन्हें फंड उपलब्ध कराना होना चाहिए। इस फिल्म विकास परिषद में उन निर्माताओं की भागेदारी होनी चाहिए जो इस क्षेत्र में पहले से काम करते आ रहे हैं। सरकारी तंत्र को इससे दूर रखना चाहिए। इस दिशा में भी योगी सरकार काम कर रही है।

अभी तक के अधूरे प्रयास

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ऐसा नहीं है कि इससे पहले उत्तर प्रदेश में फिल्म निर्माण के प्रयास नहीं हुए। 1979 में फिल्म निर्माता मुजफ्फर अली ने रेखा को लेकर उमराव जान फिल्म का निर्माण किया। इसको पीरियड फिल्म कहा जा सकता है, लेकिन सरकारी स्तर पर फिल्म निर्माता को कोई सहयोग नहीं मिला। मुजफ्फर अली ने लखनऊ के कलाकारों को बड़ा मौका दिया लेकिन इस तरह के प्रयास उत्तर प्रदेश वालों के लिए रोजगार के अवसर पैदा नहीं कर सके। इसी के चार-पांच साल बाद सुधीर मिश्रा अपनी फिल्म ‘‘ये वो मन्जिल तो नहीं‘‘ लेकर आये जिसमें नसीरूद्दीन शाह, मनोहर सिंह और पंकज कपूर जैसे कलाकार थे। इसी फिल्म में आकाशवाणी लखनऊ के जयदेव शर्मा कमल ने छोटी परन्तु महत्वपूर्ण राज्यपाल की भूमिका की इसे आप समानान्तर और कला फिल्म का मिश्रण कर सकते हैं। मशहूर हिन्दी पत्रकार घनश्याम पंकज के पुत्र कबीर कौशिक ने माफिया श्रीप्रकाश शुक्ला पर केन्द्रित फिल्म सहर का निर्माण किया जिसमें अरशद वारसी की मुख्य भूमिका थी। कई प्रयास इससे पहले भी हुए, 1952 की बात है लखनऊ में विधानसभा मार्ग पर जहां यूपी स्टेट एग्रो का आफिस हुआ करता था। वहां आइडियल स्टूडियो था। जहां दो फिल्मों का निर्माण हुआ। मुख्तार अहमद और आरके गुप्ता (मेकअप मैन) इसी स्टूडियो से निकली प्रतिभाएं थीं। उत्तर प्रदेश सरकार का एक चलचित्र निगम भी था। कहा जाता है कि यह संस्थान बन्द हो गया। परन्तु सूत्र बताते हैं कि यह आज भी सरकारी पत्रावलियों में जिन्दा है। सवाल यह है कि उसकी उपयोगिता क्या है?

फिल्म नगरी से पहले उत्तर प्रदेश सरकार को फिल्म प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना पर बल देना चाहिए। यह कुछ पुणे फिल्म संस्थान की तरह ही होना चाहिए। जवाहर लाल नेहरू और इन्दिरा गांधी दोनों ने ही 1959 में फेडरेशन आफ फिल्म सोसायटी आफ इण्डिया की स्थापना के माध्यम से सिनेमा को सहयोग देना शुरू किया था। फिल्म इन्क्वायरी कमेटी की सिफारिशों के आधार पर सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने एक ऐसा संस्थान स्थापित करने का निर्णय लिया जो पटकथा लेखन, निर्देशन, सिनेमेटोग्राफी, साउण्ड रिकार्डिंग और संपादन में प्रशिक्षण दे सके। इसके लिए पुणे के बेकार हो चुके प्रभात फिल्म स्टूडियो का परिसर खरीदा गया। नसीरूद्दीन शाह, ओम पुरी, स्मिता पाटिल, शबाना आजमी, जया बच्चन और राजकुमार राव जैसे  कलाकार यहां से निकले। एडिटर रेनू सलूजा सिनेमेटोग्राफर केके महाजन और सन्तोष शिवन जैसी हस्तियां भी इसी संस्थान से फिल्म जगत में पहुंचीं। अब फिल्म, टीवी और स्क्रीन प्ले की सीटों को कम कर दिया गया और पाठ्यक्रम ऐसे बनाए गए हैं कि छात्र तीन साल की अवधि से ज्यादा न रुकने पाएं।

हालांकि पिछली सरकार ने उत्तर प्रदेश में फिल्म उद्योग के विकास व फिल्मों को लोकप्रिय बनाने के लिए महत्वाकांक्षी योजना तैयार की. राज्य सरकार द्वारा इसके लिए राष्ट्रीय फिल्मोत्सव निदेशालय से एक समझौता करने की बात कही गई। इसके तहत निमार्ताओं तथा कलाकारों को सूबे में फिल्म बनाने के लिए प्रोत्साहित करने के साथ हर साल एक फिल्मोत्सव के आयोजन की भी बात कही गई। इस फिल्मोत्सव के आयोजन का मकसद उच्च श्रेणी की राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय फिल्मों को राज्य के आम आदमी की पहुंच में लाने के लिए सार्थक प्रयास करना था। इससे सूबे में स्वस्थ सिनेमा संस्कृति का विकास होता तथा फिल्म उद्योग के विकास के लिए एक व्यापक आधार तैयार होता। दावा भी किया गया कि सूबे में फिल्म उद्योग को लोकप्रिय बनाने के लिए राज्य सरकार द्वारा कारगर पहल की गई है। इसके तहत उत्तर प्रदेश संशोधित फिल्म नीति में फिल्म निमार्ताओं को आर्थिक सहायता एवं राज्य में शूटिंग के लिए सुविधाएं, सर्वश्रेष्ठ फिल्म निमार्ता एवं निर्देशकों को पुरस्कार देने की चौकस व्यवस्था भी की गई। राज्य में फिल्मोत्सव का आयोजन, उद्योग, सूचना, पर्यटन, मनोरंजन कर तथा संस्कृति विभाग द्वारा संयुक्त रूप से करने की बात उठी। फिल्मोत्सव का आयोजन फिल्म विकास निधि के माध्यम से होना था। इसका पर्यवेक्षण फिल्म बंधु द्वारा किया जाना था। राज्य सरकार द्वारा इसके लिए राष्ट्रीय फिल्मोत्सव निदेशालय से एक समझौता भी करने की बात थी, लेकिन यह सबकुछ वैसा नहीं हो सका, जैसे वादे इरादे जताए गए थे। अब प्रदेश की योगी सरकार ने नए सिरे से अपने ढंग से इस पर ध्यान देना शुरू किया है। इसी लिए यूपी ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट का इसे एक प्रमुख अंग बनाया गया है।

Film City की राह में रुकावटें 

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दबंग
’, ‘बंटी और बबली’, ‘तनु वेड्स मनु’, ‘बुलेट राजा’, ‘इश्किया’, ‘इशकजादे’, ‘उमराव जान’, ‘अंजुमन’, ‘नदिया के पारऔर मेरे हुजूर’, ‘मेरे महबूब’, ‘चौदहवीं का चांदजैसी तमाम ऐसी फिल्में हैं जिन्हें दर्शक नहीं भूल पाएंगे की भी। इन सभी फिल्मों में एक समानता है, वो ये कि ये सभी फिल्में उत्तर प्रदेश में ना केवल बनी बल्कि इनकी कहानियों में भी यूपी की संस्कृति की झलक और यहां का सोंधापन है। अब सवाल ये उठता है कि जब उत्तर प्रदेश पर बनी फिल्में इतनी पसंद की जाती है तो क्यों यहां का फिल्म उद्योग दक्षिण भारतीय या भोजपुरी फिल्मों की तरह पनप नहीं पा रहा। जबकि वर्तमान सदी में भारतीय सिनेमा, हॉलीवुड और चीनी फिल्म उद्योग के साथ एक वैश्विक उद्योग बन गया। भारतीय सिनेमा ने 90 से ज़्यादा देशों में बाजार बनाया है, जहां भारतीय फिल्में प्रदर्शित होती हैं। ऐसे में क्या उत्तर प्रदेश को अपने हिस्से का लाभ नहीं उठाना चाहिए? ऐसा नहीं है कि इस दिशा में प्रयास हुए नहीं हैं, लेकिन उन प्रयासों में प्रतिबद्धता नहीं थी।

आजादी के बाद हुए काफी प्रयास

आजादी के बाद फिल्म अभिनेता सुनील दत्त ने 1967 में उत्तर प्रदेश में फिल्म उद्योग स्थापित करने के लिए अनुकूल माहौल बताया था। इसके साथ ही चंद्रभानु गुप्त ने भी उप्र में फिल्म उद्योग स्थापित करने के प्रयास किए, लेकिन सरकार गिरने के साथ ही यह प्रयास भी दम तोड़ गए। 1980 में वीपी सिंह सरकार ने सूबे में फिल्मों को बढ़ावा देने के लिए उत्तर प्रदेश में चलचित्र निगम की स्थापना की और फिल्म बनाने वालों को उपकरण व सब्सिडी के तौर पर तीन लाख रुपये देने की घोषणा की। इसके अलावा कुछ सप्ताह तक प्रदेश में फिल्म को मनोरंजन कर से मुक्त रखने का एलान भी किया गया, लेकिन नौकरशाहों की लचर कार्यशैली के कारण चलचित्र निगम बंद हो गया। जिसके बैनर तले सिर्फ एक फिल्म कर्म कसौटी’ 1990 में बनी, जो कभी रिलीज ही नहीं हो सकी। नतीजतन चलचित्र निगम के महंगे उपकरण कौड़ियों के दाम बेच दिए गए। 1984 में एक बार फिर तत्कालीन सूचना राज्यमंत्री प्रमोद तिवारी ने मुंबई के निर्माताओं की बैठक में उप्र में फिल्म उद्योग लगाने की घोषणा की। कहा गया कि लखनऊ के इंदिरा नगर में स्टूडियो और प्रयोगशाला बनाई जाएगी, लेकिन यह घोषणा भी नौकरशाही ओर नेताओं के बीच खींचतान के कारण पूरी नहीं हो सकी।

  भाजपा की सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री राम प्रकाश गुप्ता ने फिल्म बंधु की स्थापना की। शत्रुघ्न सिन्हा फिल्म बंधु के पहले अध्यक्ष बनाए गए। बाद में अनुपम खेर इसके अध्यक्ष बने। जया बच्चन भी फिल्म बंधु की अध्यक्ष रह चुकी हैं। इतनी नामचीन हस्तियों के फिल्म अध्यक्ष बनने के बाद भी प्रदेश में फिल्म उद्योग का सपना केवल सपना बनकर ही रह गया। सिनेमा हाल बंद होते गए और दर्शक सिनेमा घरों से रूठे रहे। मायावती सरकार बनने के बाद यशवंत निकोसे फिल्म बंधु के अध्यक्ष बने किंतु फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कोई ठोस काम नहीं हो सका। उत्तर प्रदेश में फिल्म उद्योग को बढ़ावा देने के लिए अखिलेश यादव सरकार द्वारा नीति में किए गए बदलाव से इस बात की उम्मीद बढ़ी कि प्रदेश में अब फिल्म उद्योग के अच्छे दिन आने वाले हैं। इसके तहत वर्ष 2001 में जारी फिल्म नीति में संशोधन कर प्रदेश में बनने वाली हिंदी फिल्में, जिनमें अवधी, ब्रज, बुंदेली एवं भोजपुरी सम्मिलित हैं, जिनकी कम से कम 75 प्रतिशत शूटिंग उप्र में की गई हो, तो उन्हें लागत का 25 प्रतिशत अनुदान देने की बात कही गई। अनुदान की सीमा प्रत्येक फिल्म के लिए एक करोड़ रुपये तक होगी। साथ ही पूर्व राज्य सरकार प्रदेश में प्रत्येक वर्ष फिल्मोत्सव कराने पर भी विचार कर रही थी। इसका मकसद उच्च श्रेणी की राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय फिल्मों को राज्य के आम आदमी की पहुंच में लाने के लिए सार्थक प्रयास करना था। इससे सूबे में स्वस्थ सिनेमा संस्कृति का विकास होने की उम्मीद थी तथा फिल्म उद्योग के विकास के लिए एक व्यापक आधार तैयार होता। फिल्मोत्सव का आयोजन, उद्योग, सूचना, पर्यटन, मनोरंजन कर तथा संस्कृति विभागों द्वारा संयुक्त रूप से जाना था। लेकिन प्रदेश में फिर भी कुछ ऐसी कमियां रह गईं, जिस कारण यहां फिल्म निर्माण उद्योग का रूप नहीं ले सका।

यूपी में हो रामोजी जैसी फिल्म सिटी

प्रदेश में हैदराबाद की रामोजी फिल्म सिटी के तर्ज पर एक फिल्म सिटी का निर्माण किया जाना चाहिए, जो नोएडा फिल्म सिटी की तरह एक औपचारिकता मात्र न हो। आधुनिक तकनीक से लैस अच्छे स्टूडियोज से इसकी पहचान हो, फिल्म निर्माताओं को काम करने, ठहरने, सुरक्षा तथा यातायात आदि की अच्छी व्यवस्था मुहैया कराई जाए। इसके लिए सरकार को चाहिए की वो देश विदेश के बड़े औद्योगिक घरानों, फिल्म निर्माताओं को अनुकूल माहौल का आश्वासन दे जिससे वो अपना पैसा और प्रतिभा प्रदेश में इनवेस्ट करने को राजी हों। साथ ही प्रदेश के कलाकारों और आम जनता को भी सोच बदलने की जरूरत है। जरूरत है हर स्तर पर एक मंझे हुए व्यावसायिक दृष्टिकोण की जिसके बाद उम्मीद की जा सकती है कि महानायक अमिताभ बच्चन, संगीतकार नौशाद अली और गीतकार जांनिसार अख्तर, खुमार बाराबंकवी और शकील बदायूंनी पैदा करने वाली धरती पर सिनेमा का आने वाला कल स्वर्णिम साबित होगा…. क्योंकि सवाल सिर्फ उद्योग का नहीं प्रदेश की प्रतिभाओं के विस्तारण का भी है। योगी सरकार इन सारी जरूरतों को समझ रही है। उन जरूरतों को पूरा करने के लिए जोर भी लगाना शुरू कर दिया है।

फिल्म कोष की स्थापना

उत्तर प्रदेश में फिल्म निर्माण को बढ़ावा देने के मकसद से राज्य सरकार सूबे में इसके लिए मूलभूत ढांचा तैयार करने के लिए फिल्म कोष की स्थापना करेगी। प्रदेश मंत्रिमण्डल द्वारा पारित औद्योगिक निवेश एवं रोजगार सृजन नीति के अनुसार, ' 'राज्य सरकार एक फिल्म कोष बनाने की इच्छुक है, इसका प्रयोग फिल्मों, वृत्तचित्रों तथा क्षेत्रीय फिल्में बनाने के लिए जरूरी ढांचा तैयार करने में किया जाएगा। नई उद्योग नीति की बात करें तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि नई उद्योग नीति राज्य,उद्यमियों तथा जनता के हित से जुड़ी होनी चाहिए, जिससे अधिक से अधिक रोजगार सृजन तथा संतुलित आर्थिक विकास को बढ़ावा मिले। योगी ने उत्तर प्रदेश औद्योगिक निवेश एवं रोजगार प्रोत्साहन नीति, 2017 की समीक्षा बैठक के दौरान नीति से जुड़े सभी महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर विस्तृत विचार-विमर्श किया और अपने सुझाव भी दिए। उन्होंने कहा कि नई नीति उत्तर प्रदेश को निवेश गंतव्य के रूप में स्थापित करने के साथ-साथ राज्य, उद्यमियों तथा जनता के हित से जुड़ी होनी चाहिए। इसके लिए पूंजी निवेश को आकर्षित करने के साथ-साथ बुनियादी अवस्थापना सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं तथा प्रक्रियाओं का सरलीकरण किया जाए। सुरक्षा का वातावरण हो, कानून व्यवस्था तथा विद्युत आपूर्ति के प्रबन्ध किए जाएं। पूर्वांचल और बुन्देलखण्ड तथा अन्य पिछड़े क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना के लिए विशेष प्रोत्साहन दिए जाने की व्यवस्थाएं सुनिश्चित की जाएं। उत्तर प्रदेश को एक विस्तृत आबादी और बड़ा बाजार बताते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों को बढ़ावा देने के साथ-साथ युवाओं में उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करने पर विशेष फोकस किया जाए। नीति ऐसी बने, जिससे युवाओं में आत्मनिर्भरता और रोजगार सृजन को बढ़ावा मिले। एक अनुकूल औद्योगिक वातावरण बनाते हुए व्यापार करने में सहजता को विकसित किया जाए। मुख्यमंत्री ने कहा कि ऐसी खाली पडी भूमि को चिन्ह्ति किया जाए, जिसका उपयोग औद्योगिक क्षेत्रों और परिक्षेत्रों में उद्योग के लिए भूमि बैंकों के रूप में किया जा सकता है। फूड पार्क, आईटी पार्क, वस्त्रोद्योग को विकसित करने पर विशेष ध्यान दिया जाए। योगी ने उत्तर प्रदेश में पूंजी निवेश और उद्योग स्थापना की विशाल सम्भावनाओं को रेखांकित करते हुए कहा कि उद्यमियों, उद्योगपतियों और उद्योग समूहों के सुझावों का भी संज्ञान लेते हुए नीति को अन्तिम रूप दिया जाए।

सारी स्थितियां अनुकूल हैं

उत्तर प्रदेश को फिल्म निर्माण के प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित करने के लिए राज्य सरकार प्रदेश में फिल्म की शूटिंग के अनुकूल माहौल बनाने तथा फिल्म निर्माण से सम्बन्धित तमाम गतिविधियों के सम्पूर्ण विकास के प्रति इच्छुक है। नीति में कहा गया है कि राज्य में फिल्म निर्माण तथा शूटिंग के लिए जरूरी ढांचा, जैसे कि स्टूडियो या प्रोसेसिंग लैब इत्यादि विकसित किए जाएंगे और सरकार फिल्म सिटी बनाने में मदद करेगी। साथ ही वह अन्य जरूरी ढांचा बनाने में भी सहयोग करेगी। नई नीति में मल्टीप्लेक्स निर्माण को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न वित्तीय प्रोत्साहन दिए गए हैं। साथ ही बंद हो चुके या नुकसान में चल रहे सिनेमाघरों को फिर से संचालित करने का इरादा जाहिर किया गया है। राज्य सरकार सिनेमाघर मालिकों को बिजली उत्पादन संयंत्र स्थापित करने के लिए भी प्रोत्साहित करेगी। इन संयंत्रों में बनने वाली बिजली को विद्युत कर से मुक्त रखा जाएगा। फिल्म उद्योग के विकास के लिये प्रतिभाशाली कलाकारों तथा तकनीकी कामगारों को समुचित प्रशिक्षण दिए जाने की जरूरत को महसूस करते हुए राज्य सरकार प्रदेश में फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान स्थापित करने के लिए केंद्र सरकार के साथ सहयोग करेगी। निजी क्षेत्र को भी प्रशिक्षण केंद्र खोलने के लिये प्रोत्साहित किया जाएगा। प्रदेश में फिल्म उद्योग को बढावा देने के लिए सरकार मनोरंजन कर में रियायत तथा कलाकारों को दिए जाने वाले पारिश्रमिक पर अनुदान भी दिया जाएगा। इसके अलावा एकल खिडकी प्रणाली तथा फिल्म उत्पादन यूनिट की सुरक्षा के बंदोबस्त इत्यादि प्रशासनिक सहयोग भी उपलब्ध कराया जाएगा। फिल्म निर्माताओं की सुविधा के लिए जिलाधिकारी की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गयी है यूपी में फिल्मों के निर्माण और सरकार द्वारा फिल्म निर्माताओं को दी जा रही सुविधाओं के कारण यूपी में फिल्म निर्माण के लिए फिल्म निर्माता आकर्षित हो रहे हैं। अब तक 110 फिल्म निर्माताओं ने प्रदेश में फिल्म निर्माण के लिए आवेदन किया है। इनमें से तीन फिल्मों यथा-जानिसार फिल्म को 2.25 करोड़ रुपये, तेवर को 2 करोड़ रुपये तथा दोजख-इन सर्च आफ़ हेवेन को 60 लाख रुपये का अनुदान उपलब्ध कराया जा चुका है। मुख्य सचिव उप्र शासन के आदेशानुसार समस्त जनपदों में क्षेत्रीय फिल्मों के निर्माण हेतु फिल्म निर्माताओं की सुविधा के लिए जिलाधिकारी की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गयी है। प्रदेश में क्षेत्रीय फिल्मों को प्रोत्साहन दिये जाने से प्रदेश में फिल्म निर्माताओं, कलाकारों में अपार हर्ष व्याप्त है। प्रदेश में पर्यटन की असीम सम्भावनाओं में वृद्धि हो रही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने सिनेमा को मनोरंजन उद्योग के रूप में विकसित करने के लिए ठोस कदम उठाये हैं। प्रदेश में फिल्म निर्माण की अपार संभावनाओं को दृष्टिगत राज्य सरकार ने फिल्मों, फिल्म निर्माताओं, फिल्म निर्देशकों तथा उ0प्र के लिए पना की है। उप्र में फिल्म निर्माताओं को आकर्षित करने और प्रदेश में ही शूटिंग करने, फिल्म निर्माण के लिए उत्तर प्रदेश फिल्म नीति लागू कर दी है। इसमें फिल्म निर्माताओं को वित्तीय सहायता देने के लिए आकर्षक अनुदान देने की व्यवस्था सुनिश्चित की गयी है। भारतीय सिनेमा के इतिहास में उप्र की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस प्रदेश ने फिल्म उद्योग को कई ख्याति प्राप्त फिल्म निर्माता, निर्देशक कलाकार, गीतकार, संगीतकार तथा कथा-पटकथाकार दिये हैं। उप्र के वर्तमान विशाल भू-भाग में फिल्म निर्माण की विपुल संस्कृति धरोहर मौजूद है, जो प्रदेश के गौरवशाली इतिहास इसकी वैभवपूर्ण वास्तुकला तथा स्थानीय संस्कृतियों की विविधता आदि सभी फिल्म निर्माण के लिए आवश्यक तत्व उपलब्ध कराते हैं। फिल्म नीति में फिल्म उद्योग को बढ़ावा देने के लिए आर्थिक अनुदान की व्यवस्था प्रदेश की क्षेत्रीय भाषा/बोलियों में बनने वाली फिल्मों की शूटिंग एवं फिल्मों के निर्माण हेतु अवस्थापना सुविधा, फिल्म सिटी की स्थापना, स्टूडियो लैब्स की व्यवस्था, मनोरंजन कर में कमी एवं टैक्स फ्री की सुविधा, उप्र में मल्टीप्लेक्सेज की स्थापना बंद छविगृहों को पुर्नजीवित करने, वर्तमान छविगृहों का उच्चीकरण छविगृह परिसर का अनुरक्षण, छविगृहों के लिए भूमि की व्यवस्था, कैप्टिव विद्युत उत्पादन, छविगृहों को उद्योग का दर्जा, फिल्म नगरी/नगरियों की स्थापना, फिल्म उपकरणों की व्यवस्था, शूटिंग स्थलों का विकास, फिल्मी कलाकारों तथा तकनीशियनों का प्रशिक्षण, फिल्म इकाईयों के लिए आवासीय सुविधा, सरकारी हवाई पट्टियों का प्रयोग, फिल्मों का वित्त पोषण, फिल्म निधि की स्थापना, फिल्मों के लिए पुरस्कार, फिल्म उत्सव एवं फिल्म महोत्सवों का आयोजन, वित्तीय प्रोत्साहन, क्षेत्रीय फिल्मों को वरीयता, फिल्मों का प्रचार-प्रसार व्यवस्था तथा फिल्म सोसायटीज का गठन आदि की सुदृढ़ व्यवस्था सुनिश्चत की जा रही है। फिल्म बन्धु के अध्यक्ष का कहना है कि राज्य सरकार उत्तर प्रदेश को सांस्कृतिक गतिविधियों के केन्द्र के रूप में विकसित करने का कार्य कर रही है। प्रदेश में फिल्मों के निर्माण को बढ़ावा दिया जा रहा है। प्रदेश में फिल्म निर्माण और बाजार की अपार सम्भावनाएं हैं। गोवा में आयोजित फिल्म बाजार में प्रदेश के फिल्म बन्धु पेवेलियन का लगभग 1000 से अधिक फिल्म निर्माताओं,निर्देशकों तथा लेखकों ने अवलोकन किया। फिल्म बाजार के नॉलेज सिरीज को देश-विदेश के फिल्म निर्माताओं, निर्देशकों एवं लेखकों ने सम्बोधित किया। उन्होंने फिल्म निर्माता निर्देशकों को उत्तर प्रदेश में फिल्म निर्मित करने का न्योता भी दिया। उत्तर प्रदेश में अच्छी लोकेशंस के साथ अच्छी प्रतिभाएं भी है। प्रदेश सरकार फिल्म निर्माण के लिए सहूलियतें दे रही हैं। यूपी में निर्मित की जाने वाली फिल्मों के लिए अधिकतम 3 करोड़,75 लाख रुपए तक की फिल्म सब्सिडी दी जा रही है। 

फिल्म बनाने पर मिलती है सब्सिडी (SUBSIDY) 

फिल्म में प्रदेश के कलाकारों को अवसर देने पर 50 लाख रुपए तक की सब्सिडी का भी प्रावधान है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश की पर्यटन मंत्री श्रीमती रीता बहुगुणा जोशी ने गोवा में आयोजित किए गए 48वें अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल आफ इण्डिया (आई0एफ0एफ0आई0) के समापन समारोह में शिरकत की। इस अवसर पर उन्होंने फेस्टिवल में सम्मानित किए गए विजेता को पुरस्कार प्रदान किया। ज्ञातव्य है कि उत्तर प्रदेश इस समारोह का एसोसिएट स्पान्सर भी है। श्रीमती जोशी ने मीडिया को उत्तर प्रदेश फिल्म नीति तथा प्रदेश के पर्यटन स्थलों के विषय में जानकारी दी। उन्होंने फिल्म निर्माताओं को उत्तर प्रदेश में फिल्म बनाने के लिए आमंत्रित भी किया। उन्होंने फिल्म नीति के तहत फिल्म निर्माताओं को उपलब्ध कराई जा रही सब्सिडी के विषय में जानकारी देते हुए बताया कि इसके तहत उन्हें 3.75 करोड़ रुपये तक की राशि मिलेगी। यदि फिल्म में सभी कलाकार उत्तर प्रदेश के होंगे, तो 50 लाख रुपये की अतिरिक्त सब्सिडी भी दी जाएगी। पर्यटन मंत्री ने फिल्म निर्माताओं को आश्वस्त किया कि उत्तर प्रदेश में फिल्म निर्माण के सम्बन्ध में उन्हें हर प्रकार की सहायता उपलब्ध कराई जाएगी। उन्होंने उत्तर प्रदेश की फिल्म नीति तथा फिल्म निर्माण से सम्बन्धित गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों के विषय मंअ जानकारी दी। अन्य प्रयासों को देखें तो विगत वर्षों में प्रदेश में फिल्म उद्योग के विकास और फिल्म निर्माण को बढ़ावा देने के नाम पर तमाम प्रयास भी सामने आए हैं। इन प्रयासों में फिल्मों को टैक्स फ्री करना तो कभी करोड़ों का अनुदान देना प्रदेश की फिल्म नीति का एक हिस्सा रही है। प्रदेश के कलाकारों को भी सरकार अपने खर्च पर फिल्म की पढ़ाई के लिए मायानगरी भेज रही है। इन सब प्रयासों के लिए हाल ही में सूबे को मोस्ट फिल्म फ्रेंडली स्टेट का अवार्ड भी मिला है। पहले भी फिल्म उद्योग में बढ़ोतरी के लिए हुई थी कवायद उत्तर प्रदेश में कई बार फिल्म उद्योग की स्थापना के लिए सुविधाएं देने की घोषणा की गई, पर कई कारणों के चलते संभव नहीं हो पाया, लेकिन अब इस दिशा में नए सिरे प्रयास निश्चित रूप से रंग लाएंगे।

Film City बनने के फायदे

सवाल है कि आखिर सरकार द्वारा फिल्म उद्योग को इतना बढ़ावा क्यों दिया जा रहा है, इसके पीछे कई कारण हैं। जानकार मानते हैं कि इससे भविष्य में सूबे को कई फायदे होंगे।

राजस्व में बढ़ोतरी

किसी फिल्म की शूटिंग के लिए भारी रकम का खर्च होता है। पूरी क्रू के रहने खाने का इंतज़ाम, एक जगह से दूसरी जगह ट्रेवल पर खर्च, बिजली पानी और अन्य चीज़ो पर भी भारी खर्च आता है। हालाँकि सरकार इस पर अनुदान भी देती है पर फिर भी राजस्व में मुनाफा ही होता है।

मेट्रोपोलिटन सिटी बनने में मिलेगी मदद, बढ़ेगा रोज़गार

प्रदेश की राजधानी लखनऊ को मेट्रोपोलिटन सिटी बनाने के लिए कवायद की जा रही है। मेट्रो, आईटी हब के साथ अंतर्राष्ट्रीय स्टेडियम का निर्माण भी ज़ोरों पर है। ऐसे में राजधानी के युवाओं का मानना है कि मेट्रोपोलिटन शहर वो होता है जहां दिन की तरह नाईट लाइफ हो। लोग 24x7 की शिफ्ट्स में काम करें और रात हो या दिन ट्रांसपोर्ट, खान पान और सुरक्षा जैसी सुविधा भी जनता को मुहैया हो। 24x7 शिफ्ट्स में काम करने के लिए आई टी और मीडिया सेक्टर ज़्यादा सक्रिय हैं। एनसीआर में भी अधिकतर यही दोनों सेक्टर 24x7 कार्यगत हैं, जिससे अन्य सेक्टर इनकी ज़रूरत पूरी करने में कार्यगत हैं। इससे ज़्यादा युवाओं को रोज़गार मिलेगा।

टूरिजम (TOURISM) को मिलेगा बढ़ावा

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प्रदेश में फिल्म उद्योग बढ़ने के बाद टूरिजम (TOURISM) को भी बढ़ावा मिलेगा। मार्किट एनालिस्ट, मधु गुप्ता ने एक ट्रेवल वेबसाइट को बताया कि जुलाई 2015 में ज़िन्दगी न मिलेगी दोबारा के रिलीज होने के बाद उसी साल भारत से स्पेन का टूरिजम (TOURISM) में 32 प्रतिशत का इजाफा हुआ था। बतादें इस फिल्म में स्पेन की कई सुन्दर जगह और अजब और गरीब खेलों का नज़ारा दिखाया गया था।

जगहों के नाम और हिडन कल्चर होगा अमर

प्रदेश में ऐसी कई जगह और हिडन कल्चर हैं, जिससे दुनिया के अधिकतर लोग वाकिफ नहीं हैं। यह वो राज्य हैं जहां संस्कृति, तहज़ीब और कई रहस्मयी चीज़े हैं जिसे एक सीमित क्षेत्र तक ही जाना जाता है। फिल्मों में दर्शाने से लोगों के लिए यह नयी चीज़ के रूप में उभर के आएगा और लोग इन्हें जानने के साथ इनकी ओर आकर्षित भी होंगे।

राज्य में भी आएगा लेटेस्ट फैशन

ज़ाहिर है कि राज्य में अगर फिल्म उद्योग बढ़ेगा तो सेलेब्रिटीज़ का आगमन भी ज़्यादा होगा, जिनको आप टीवी और फिल्मों में देख उनके स्टाइल को फॉलो करते हैं, वहीं फैशन उनके खुद यहाँ आने से जल्द ही पॉपुलर हो सकेगा। यह सिर्फ फैंस के लिए ही नहीं कपडा व्यवसायियों के लिए भी फायदेमंद साबित होगा। उदाहरण के तौर पर लखनऊ की चिकन कढ़ाई का अस्तित्व खतरे की ओर बढ़ रहा है। किसी सुपर स्टार द्वारा इसे फिल्म में पहनने से इसकी डिमांड भी बढ़ेगी और पूरे राष्ट्र में फैशन स्टेटमेंट के तौर पर मुकाम हासिल कर सकेगा।

अंतरराष्ट्रीय निर्माताओं ने दिखाई दिलचस्पी

उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद की ओर से दावा तो यहां तक किया जाता रहा है कि अमेरिका, ब्रिटेन, नीदरलैण्ड तथा यूरोप के नामी गिरामी निर्माताओं रेशेन लुईस स्मिथ, क्रिस्टोफर, मार्टिन रॉबर्ट आदि ने इंडियन पवेलियन में आकर उत्तर प्रदेश की नई फिल्म नीति के बारे में जानकारी हासिल की है। कांस के उद्घाटन समारोह में दुनियाभर के फिल्मकारों के सामने केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर प्रदेश सरकार की सराहना कर चुके हैं। दावा किया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश सरकार की मोर फिल्म्स, मोर एंप्लॉयमेंट और मेक योर फिल्म इन यूपी नीति तथा प्रदेश में शूटिंग करने व यहां के कलाकारों को काम देने पर विशेष छूट देने का असर अब प्रभावी रूप से नजर आने लगा है। यह कहने में कोई संशय नहीं कि इसी नीति के चलते प्रदेश सरकार के पास करीब डेढ़ सैकड़ा फिल्मों की शूटिंग करने के प्रस्ताव आए हैं। 30 से ज्यादा फिल्में टैक्स फ्री की गई हैं। फिल्मों के निर्माण का उत्तर प्रदेश के विकास पर प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रभाव रहा है। प्रत्यक्ष प्रभाव यह रहा कि इससे यहां के कलाकारों और युवाओं को रोजगार मिल रहा तो परोक्ष प्रभाव यह हुआ है कि यूपी में फिल्मों के निर्माण से पर्यटक आकर्षित हो रहे हैं। इसके फलस्वरूप पर्यटन के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश पूरे देश में तेजी से आगे बढ़ रहा है। इसके चलते भी रोजगार का निर्माण हो रहा है।

मॉलीवुड (MOLLYWOOD)

ऐसा नहीं है कि प्रदेश में फिल्म निर्माण को दिशा देने के प्रयास नहीं हो रहे हैं। यहां कलाकारों की भी कमी नहीं है। कमी है तो केवल सुविधाओं की। क्षेत्रीय फिल्मों की बात करें तो राजधानी दिल्ली से लगे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर की अपनी फिल्म इंडस्ट्री है जिसे यहां के लोगों ने मॉलीवुडनाम दिया हुआ है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश नाम ज़ेहन में आते ही जो पहली तस्वीर उभरती है वह काफी स्याह नज़र आती है। शायद इसकी वजह मुजफ्फरनगर दंगा, बिसाहड़ा का बीफ विवाद और कैराना में कथित तौर पर हिंदुओं का पलायन जैसी घटनाएं हैं। इस इलाके में अगले कुछ दिनों में विधानसभा चुनाव होने हैं, इसलिए इस स्याह तस्वीर के इतर एक तस्वीर ऐसी भी है जो उस सांस्कृतिक पक्ष को उजागर करती है जिसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं। भारतीय सिनेमा को अगर समुद्र माना जाए तो क्षेत्रीय सिनेमा को नदी कहा जाएगा। इन्हीं नदियों में से एक धारा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर से निकलती है जो बताती है कि कला-संस्कृति और अपनी बोली-भाषा को संजोने और उससे जुड़े रहने का यहां एक समृद्ध इतिहास रहा है। मेरठ का एक अपना सिनेमा उद्योग है, जिसे यहां के लोगों ने मॉलीवुडया देहाती सिनेमा इंडस्ट्री नाम दिया है। इस इंडस्ट्री की खास बात ये है कि यहां बनने वाली फिल्में सिनेमाघरों में नहीं बल्कि सीडी पर रिलीज होने के लिए बना करती थीं। ये दौर वीडियो सीडी का था। शूटिंग के बाद फिल्मों की सीडी बनाकर बाजार में डिस्ट्रीब्यूट कर दिया जाता था। फिल्म की एक सीडी 25 से 40 रुपये में दर्शकों को उपलब्ध हो जाया करती थी। ठेठ खड़ी बोली यानी हरियाणवी में बनने वाली यहां की फिल्में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों के अलावा दिल्ली के बाहरी इलाकों और हरियाणा से लगे राजस्थान के कुछ शहरों के दर्शकों के बीच काफी लोकप्रिय हैं। एक समय पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली के बाहरी इलाके और हरियाणा से लगे राजस्थान के कुछ इलाके विशाल हरियाणा का हिस्सा हुआ करते थे। बाद में ये अलग-अलग राज्यों का हिस्सा बन गए, लेकिन इन क्षेत्रों की बोली, भाषा और संस्कृति आज भी नहीं बदली है, जिसकी वजह से हरियाणवी में बनी फिल्में आज भी यहां देखी और पसंद की जाती हैं।

MOLLYWOOD फिल्मों का है बड़ा बाजार

मजे की बात ये है कि सिनेमाघरों में रिलीज हुए बिना ही मॉलीवुड की तमाम फिल्मों ने लाखों रुपये का कारोबार किया है। वजह ये थी कि इन इलाकों के लोगों को फिल्मों में अपनी बोली-भाषा, अपने गांव और शहर और हीरो-हीरोइन के रूप में अपने लोगों को देखना अब भी पसंद हैं। 2006 में एक रिपोर्ट के अनुसार, ‘बाजार विशेषज्ञों का यह मानना है कि चूंकि ये फिल्में हिंदी फिल्मों की तरह सिनेमाघरों में रिलीज नहीं होतीं इसलिए उससे होने वाली आय का सही अंदाजा लगा पाना मुश्किल है, फिर भी इसका बाजार तकरीबन 100 करोड़ रुपये के आसपास है। 20 से 25 रुपये में उपलब्ध होने वाली इन फिल्मों की सीडी हिंदी फिल्मों की महंगी वीसीडी के मुकाबले स्वच्छ मनोरंजन का एक बेहतर जरिया बन चुकी हैं। इसी तरह 2007 में एक रिपोर्ट के मुताबिक, ‘मॉलीवुड का कारोबार बढ़कर 100 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है. आर्टिस्ट, टेक्नीशियन और डिस्ट्रीब्यूशन से जुड़े लोगों को भी शामिल कर लें तो तकरीबन 5000 लोग इस इंडस्ट्री से जुड़े हुए हैं। हर साल लगभग 300 फिल्में रिलीज हो रही हैं और पिछले चार सालों में दो हजार से ज्यादा सीडी फिल्में बाजार में आ चुकी हैं। मेरठ में सीडी के लिए फिल्में बनाने की बात करें तो सबसे पहले ऑडियो टेप की बात आएगी. 90 के दशक में ऑडियो टेप पर कॉमेडी प्रोग्राम रिकॉर्ड किए जाते थे जो कि इस क्षेत्र के लोगों के बीच काफी हिट थे. 20वीं सदी के आखिर तक सीडी ने ऑडियो टेप को चलन से बाहर कर दिया और उनकी जगह ले ली। सीडी के आने के बाद इस तरह की कॉमेडी ऑडियो सीडी निर्माण के कारोबार ने धीरे-धीरे पेशेवराना रुख अख्तियार करना शुरू कर दिया। इसमें टी-सीरीज और मोजर बीयर जैसी फिल्म और संगीत निर्माण कंपनियां कूद पड़ीं। साल 2000 में चुटकुलों का एक ऑडियो सीडी रिलीज हुआ, इंडस्ट्री से जुड़े तमाम लोग इसी को मॉलीवुड की शुरुआत मानते हैं। इसके बाद बाजार में चुटकुलों के ऑडियो सीडी की बाढ़ सी आ गई। कुछ और प्रयोग हुए तो ऑडियो की जगह कॉमेडी की वीडियो सीडी बनाई लाने लगी। तब कुछ लोगों ने इसे ही फिल्म कहना शुरू कर दिया था। हालांकि ये फिल्म नहीं बल्कि 40 मिनट से एक घंटे के कॉमेडी नाटक हुआ करते थे। साल 2004 में सीडी पर एक फिल्म रिलीज होती है जिसका नाम था, ‘धाकड़ छोरा’. ये फिल्म जबरदस्त हिट साबित होती है। मॉलीवुड में आज भी ये फिल्म मील के पत्थर की हैसियत रखती है। शानदार कमाई की वजह से इसे मॉलीवुड की फिल्म शोले का भी खिताब मिला हुआ है। आज भी किसी फिल्म की सफलता का मानक इस फिल्म की कमाई से जोड़कर तय किया जाता है। इस फिल्म के आने के साथ ही रातोंरात इसके हीरो उत्तर कुमार और हीरोइन सुमन नेगी इलाके के युवक-युवतियों के आदर्श बन जाते हैं। उत्तर मॉलीवुड के सलमान खान के रूप में चर्चित होते हैं और सुमन इंडस्ट्री की ऐश्वर्या राय कहलाने लगती हैं। ऐसा कहा जाता है कि धाकड़ छोरा के पहले मॉलीवुड में कोई भी फुल लेंथ फिल्म नहीं बनी थी। इसके हीरो उत्तर कुमार के अनुसार, ‘फिल्म धाकड़ छोरा से ही मॉलीवुड की शुरुआत होती है। इससे पहले ऑडियो और छोटी-छोटी वीडियो फिल्में बना करती थीं।मेरठ में इंडियन मॉलीवुड फिल्म एसोसिएशन का भी गठन हुआ। पहले ये फिल्में शादियों के वीडियो बनाने वाले हैंडीकैम पर शूट हुआ करती थीं। फिल्म धाकड़ छोरा के आने के बाद फिल्म के तकनीक थोड़ा सुधार आने लगा. इसके बाद तमाम फिल्में आईं। जैसे- कर्मवीर, ऑपरेशन मजनू, बुद्धुराम, पारो तेरे प्यार में, मेरी लाड्डो, रामगढ़ की बसंती की शूटिंग में अच्छी तकनीक से लैस वीडियो कैमरों का प्रयोग होने लगा। एक समय ऐसा भी आया जब पोस्ट प्रोडक्शन का काम जिसके लिए दिल्ली के अलावा दूसरे शहरों की ओर रुख करना पड़ता, वो भी मेरठ में ही होने लगा। मेरठ में कई सारे स्टूडियो खुल गए जहां इन सीडी फिल्मों की एडिटिंग से लेकर डबिंग और बैकग्राउंड म्यूजिक देने का सिलसिला शुरू हो गया था। कहा जाए तो मॉलीवुड एक तरह से आत्मनिर्भर हो गया था।

इन फिल्मों की शूटिंग पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गांवों से निकलकर उत्तराखंड के तमाम शहरों में होने लगी. शूटिंग में सहयोग के लिए मुंबई और दिल्ली से तकनीशियन बुलाए जाने लगे थे। गीत-संगीत और कहानी के लिहाज से इन फिल्मों का स्तर सुधरने लगा था। लोगों में इनका क्रेज ऐसा था कि जो लोग आर्थिक रूप से मजबूत होते थे वे खुद हीरो बनने का सपना पाल लेते थे। ऐसे कुछ लोगों ने फिल्में भी बनाईं। तकनीक के साथ ही मॉलीवुड के निर्देशकों ने बॉलीवुड के ट्रेंड का पकड़ना शुरू कर दिया था। बॉलीवुड की हिट फिल्मों की कहानियों पर आधारित फिल्में भी बनाई गई हैं। कुछ फिल्मकारों ने हिट फिल्मों को सीक्वल भी बनाना शुरू कर दिया था. जैसे- धाकड़ छोरा का दूसरा भाग धाकड़ छोरा-2 फिल्म भी बनाई गई। कुछ निर्माता-निर्देशक मुंबई से आकर मॉलीवुड में किस्मत आजमाने लगे थे। 2007 की एक रिपोर्ट के अनुसार 26 साल तक मुंबई में काम करने वाले निर्देशक मोहम्मद हनीफ ने मॉलीवुड के लिए भी कई फिल्में बनाई थीं. इसमें लोफर, अंगार ही अंगार और प्यार की जंग प्रमुख फिल्में हैं। बॉलीवुड में किस्मत आजमा चुके एक और निर्देशक एसयू सैयद भी मॉलीवुड फिल्म रामगढ़ की बसंती बना चुके हैं। उत्तर कुमार की कुणबा नाम की फिल्म में अभिनेता कादर खान ने भी काम किया है। उदित नारायण और अल्का याग्निक जैसे गायकों ने इन फिल्मों के गानों में अपनी आवाज़ भी दी है। हालांकि मॉलीवुड सफलता की यह लय अगले कुछ साल तक ही बरकरार रख सका। वर्ष 2007-08 तक इसने सफलता का जो स्वाद चखा वह वर्ष 2009 आते-आते कसैला हो गया था, इसकी वजह भी वही सीडी बनी जिस पर ये फिल्में रिलीज हुआ करती थीं।

दरअसल सीडी में पाइरेसी का घुन लगा चुका था जिसने मॉलीवुड के समृद्ध साम्राज्य की नींव को खोखला करना शुरू कर दिया था। मॉलीवुड फिल्मों के प्रोड्यूसर और धाकड़ छोरा में खलनायक का किरदार निभा चुके भूपेंदर तितौरिया बताते हैं, ‘पाइरेसी की वजह से पैसा लगाने वाली कंपनियां अपना पैसा निकाल नहीं पा रही थीं. फिर एक वक्त ऐसा आया जब पाइरेसी के आगे इन फिल्मों ने अपने घुटने टेक दिए।फिर कुछ समय के लिए मॉलीवुड में फिल्म निर्माण का कारोबार लगभग रुक सा गया, लेकिन इससे जुड़े लोगों का हौसला डिगा नहीं. सीडी खत्म होने के बाद फिल्मकारों ने ऐसी फिल्मों के निर्माण के बारे में तैयारी शुरू की जिन्हें सिंगल स्क्रीन थियेटरों में रिलीज किया जा सके। इसके बाद मॉलीवुड एक नए सफर पर निकल पड़ा. प्रोफेशनल कैमरों से फिल्मों की शूटिंग शुरू की गई। इसके बाद फिल्मकार फिल्मों को थियेटरों तक पहुंचाने की चुनौती से रूबरू हुए। इसके लिए प्रयास शुरू हुए. कुछ समय बाद मेरठ, बागपत, मुजफ्फरनगर, शामली, हापुड़ जैसे शहरों के सिंगल स्क्रीन थियेटरों में मॉलीवुड की कुछ फिल्मों को जगह मिलनी शुरू हो गईं। सीडी का कारोबार खत्म होने के बाद रास्ता ये निकाला गया कि बड़े पर्दे के लिए फिल्म बनाई जाए। अब बड़े पर्दे की फिल्म बनाने के लिए जो बजट चाहिए होता है उसके लिए तो प्रोड्यूसर नहीं मिलता। हालांकि एक दशक से ज्यादा का सफर तय करने के बावजूद ये इंडस्ट्री अभी पूरी तरह से संगठित नहीं हो पाई है। मॉलीवुड की फिल्में लगातार रिलीज नहीं होती हैं। कुछ लोग इसकी वजह सरकार की ओर से बजट न मिलना बताते हैं। इस इंडस्ट्री की दूसरी समस्या भी है। इंडस्ट्री इसलिए संगठित नहीं हो पाई क्योंकि जो भी कलाकार थोड़ा अच्छा काम कर लेते हैं वे बॉलीवुड का रुख कर लेते हैं। यहां कई संगठन हैं लेकिन उनमें कोई आपसी तालमेल नहीं है. इसके अलावा सरकारी मदद भी नहीं मिल पाती।

भोजपुरी सिनेमा (BHOJPURI CINEMA)

यूं तो भोजपुरी सिनेमा का मुख्य क्षेत्र बिहार है, पर उत्तर प्रदेश भी इसके लिए कम मुफीद नहीं है। इसका प्रमुख गढ़ हालांकि वाराणसी है, पर पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जैसे क्षेत्र भी भोजपुरी सिनेमा निर्माण को नई दिशा दे सकते हैं, लेकिन इसके लिए भरपूर न केवल प्रयास करना पड़ेगा, बल्कि सरकार स्तर पर भी ऐसी सुविधाएं उपलब्ध करानी पड़ेंगी, जिससे शूटिंग के बाद फिल्म को अंतिम रूप देने के लिए निर्माताओं को मुंबई की ओर न भागना पड़े।

कुल मिलाकर सूबे में फिल्म निर्माण को उद्योग का दर्जा दिये जाने के करीब दो दशक बाद भी यहां न तो फिल्म निर्माण की गतिविधियां सक्रिय हो सकीं और न ही कहीं फिल्म सिटी ही विकसित हुई, जिससे न चाहकर भी सूबे के कलाकारों को अन्य सूबे में जाकर अपनी किस्मत आजमानी पड़ रही है। साथ ही प्रदेश के राजकोष में जमा होने वाले राजस्व का भी नुकसान हो रहा है। इसके पीछे कहीं न कहीं फिल्म नीति का अनुपालन न होना व संबंधित मंत्रियों की उदासीनता विशेष रूप से जिम्मेदार ठहरायी जा सकती है। गौरतलब हो कि करीब दो दशक पूर्व तत्कालीन भाजपा सरकार ने सूबे में फिल्म निर्माण को उद्योग का दर्जा दे दिया था। जिसके तहत सूबे में फिल्म निर्माण करने वाले निर्माताओं को हर सम्भव सुविधाएं प्रदान करने का प्रावधान है। 75 फीसदी से अधिक शूटिंग सूबे में करने पर फिल्म को कुछ सप्ताह तक मनोरंजन कर से मुक्त करने की घोषणा गयी थी। साथ ही सूबे की सरकार ने लखनऊ व वाराणसी में फिल्म सिटी स्थापित करने की बात कही थी। मगर यह विडम्बना ही है कि अभी तक न तो सूबे में फिल्मों का निर्माण भली-भांति शुरु हो सका और न ही कहीं फिल्म सिटी ही स्थापित हो सकी। सूबे के फिल्मी कलाकारों की माने तो फिल्म नीति का अनुपालन न हो पाने से यहां फिल्म निर्माण के लिए स्वस्थ माहौल ही नहीं बन पा रहा है। जबकि सूबे में दर्जनों ऐसे स्थल हैं जहां फिल्मों की शूटिंग अच्छे माहौल में की जा सकती है। साथ ही तमाम ऐसे स्थान हैं जहां देश के दक्षिणी राज्यों की तरह फिल्म सिटी विकसित की जा सकती है। लेकिन इसे सूबे का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि इस ओर न तो सरकार का ध्यान गया और न ही यहां के बड़े निर्माताओं व कलाकारों का जो अन्य प्रदेशों में अपना झण्डा बुलन्द किये हैं। कहने को तो 2003-2007 तक प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सिंह यादव की सरकार में फिल्म विकास परिषद का गठन किया गया था और फिल्म बन्धु को इस दिशा में प्रोत्साहन देने हेतु कार्य भी सौंपा गया था, लेकिन वह क्रियाशील नहीं बन पाया। उसके बाद सूबे में बसपा की सरकार पूर्ण बहुमत से आयी। भाजपा व सपा सरकार ने कमोवेश इस दिशा में निर्माताओं को जो प्रोत्साहन दिया भी था उसे बसपा शासनकाल में ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया। लोगों का तो कहना है कि बसपा शासन का सम्पूर्ण कार्यकाल पार्कों व मूर्तियों के निर्माण में ही बीत गया।सूबे में जब से फिल्म निर्माण को उद्योग का दर्जा मिला है और फिल्म नीति बनी है, तब से बमुश्किल दर्जन भर फिल्मों का निर्माण ही यहां हुआ है। मिसाल के तौर पर बृज भाषा की फिल्म बृज का बिरजूहिन्दी की घातक’, ‘पिपरवा पर के बरम’, ‘बंटी-बबली’, ‘गदर’, ‘शहर’, ‘ बुलेट राजा’ ‘डेढ़ इश्कियाआदि फिल्मों का नाम लिया जा सकता है। गदरकी तो ज्यादातर शूटिंग जिले के रूदौली व लखनऊ में हुई थी। इसी तरह फिल्म बन्टी-बबलीके कुछ दृश्यों की शूटिंग लखनऊ व कानपुर में भी हुई थी, जिनमें दोनों महानगरों के रेलवे स्टेशन को प्रमुखता के साथ दिखाया गया है। गत वर्ष बनी इशकफिल्म के काफी दृश्यों की शूटिंग वाराणसी व अलीगढ़ में हुई। इसी तरह अभी हाल में निर्मित एक्शन फिल्म बुलेट राजाकी करीब 75 फीसदी तथा डेढ़ इश्कियाकी करीब नब्बे फीसदी शूटिंग सूबे में हुई। सपा सरकार ने इन दोनों फिल्मों को एक-एक करोड़ रुपया अनुदान के रूप में देने की घोषणा भी किया था, लेकिन सैफई महोत्सव के दौरान फिल्मी कलाकारों पर उड़ाये गये करोड़ांे रुपयों को लेकर विपक्ष व मीडिया में किरकिरी होने के बाद सरकार ने अपना फैसला बदल दिया। इतना ही नहीं लखनऊ स्थित बेव मल्टीप्लेक्स में डेढ़ इश्कियाके प्रीमियर में शामिल होने की संस्तुति देने के बाद मुख्यमंत्री ने उसे भी रद कर दिया था। फिल्मी कलाकारों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में फिल्म निर्माण की अपार संभावनाएं हैं। यहां इस क्षेत्र में काम करने वाले प्रतिभाओं की भी कमी नहीं है। लेकिन शासन-प्रशासन का समुचित सहयोग न मिलने से मुम्बइया फिल्म निर्माता यहां फिल्म निर्माण के प्रति आकर्षित नहीं हो रहे हैं। प्रदेश सरकार की फिल्म नीति के प्राविधानों और इसके तहत दी जाने वाली सहूलियतों के दावों की उस समय पोल खुल जाती है, जब किसी फिल्म की यहां शूटिंग हो रही होती है। उत्तर प्रदेश कला-संस्कृति के क्षेत्र में आजादी के पूर्व से ही काफी समृद्ध रहा है। सूबे की धरती पर कई नामी-गिरामी कलाकार, गीत-संगीत कार, लेखक, पटकथा लेखक, फिल्म निर्माता-निर्देशक जन्म ले चुके हैं और उत्कृष्ट कार्यों से देश-विदेश में अपना लोहा मनवाकर बुलंदियों पर पहुंचे हैं। बता दें कि सूबे में फिल्म नीति बनने से पहले लागी नहीं छूटे रामा’, ‘पालकी’, ‘सावन को आने दो’, ‘प्रीतम मोरे गंगा तीरे’, ‘उमराव जान’, ‘शतरंज के खिलाडी’, ‘नदिया के पार’, ‘ सरयू तीरे’, ‘बहिनी तोहरे खातिर’, ‘गंगा किनारे मोरा गांव’, जैसी दर्जनों भोजपुरी, हिन्दी व अन्य आंचलिक भाषा की फिल्मों का निर्माण हो चुका है। सूबे में नमक हलाल, आगमन, गदर, एलओसी, कारगिल , अर्जुन पंडित, चितचोर जैसी कई सफल फिल्मों की आंशिक शूटिंग भी हुई है। प्रदेश के फैजाबाद व अयोध्या में अवधी भाषा की पहली फिल्म सरयू के तीरेएवं प्रख्यात निर्माता-निर्देशक कनक मिश्र की प्यार का सावन’, प्रदीप कुमार की फिल्म न भूले हैं न भूलेंगेका निर्माण ढाई दशक पूर्व हो चुका है। कुछ धारावाहिकों का निर्माण भी यहां स्थानीय स्तर पर हुआ है। फिल्मी कलाकारों व निर्माता-निर्देशकों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में फिल्मों के निर्माण को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है कि शासन और प्रशासन अपनी मानसिकता बदले। उसमें जो इच्छा शक्ति की कमी दिख रही है उसे दूर करे। साथ ही फिल्म निर्माताओं को फिल्म नीति के तहत हर संभव मदद करे और इस कार्य में कोई राजनीति न हो। तभी यहां फिल्मोद्योग विकसित हो सकता है। उनका कहना है कि यदि प्रदेश में फिल्म सिटी न विकसित हो सके, तो कम से कम लखनऊ एवं वाराणसी में ऐसे बड़े स्टूडियो व लैब स्थापित किये जायें जहां निर्माता अपनी फिल्मों एवं धारावाहिकों की शूटिंग के बाद के अन्य कार्यों को संपादित कर सकें। मात्र घोषणाओं व आश्वासनों से कुछ नहीं होने वाला है। स्थिति यदि यही रही तो प्रदेश के कलाकार अपना हुनर दिखाने में नाकाम साबित होंगे। फिलहाल इन सारी कठिनाइयों और समस्याओं को देखते हुए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने फिल्म उद्योग फिल्म निर्माण को सहूलियत देने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। कहा जा सकता है कि जल्द ही प्रदेश में भी फिल्म उद्योग निवेश का एक आकर्षक क्षेत्र बनकर उभरेगा।

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