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यूं तो भारत में बैंकिंग का इतिहास काफी
पुराना है। देखा जाए तो देश में पहला बैंक बैंक आफ हिंदुस्तान 1770 स्थापित हुआ
था। इसकी स्थापना एलेग्जेंडर एंड कंपनी ने की थी।
1829 आते-आते इसकी हालत खस्ता हो
गई और इसे 1832 में बंद करना पड़ा। दूसरा
बैंक था –दि जनरल बैंक आफ इंडिया, जिसकी शुरुआत 1786 में हुई थी। लेकिन पांच साल
चलने के बाद 1791 में यह भी बंद हो गया। इसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में पूरी
तरह सक्रिय हो चुकी थी। उसने तीन बैंकों की स्थापना की। पहला बैंक था बैंक आफ
कलकत्ता। इसकी स्थापना 1806 में हुई। 1809 में इसका नाम परिवर्तित कर बैंक ऑफ़ बंगाल
कर दिया गया। इसी तरह 1840 में बैंक ऑफ मुंबई
एवं 1843 में बैंक ऑफ मद्रास
की स्थापना हुई। इन तीनों बैंकों का 1921 में विलय कर दिया गया और नया नाम रखा गया
इंपीरियल बैंक आफ इंडिया। देश आजाद होने के बाद इंपीरियल बैंक आफ इंडिया का नाम 1955
में एक बार फिर बदला और उसका नाम कर दिया गया-स्टेट बैंक आफ इंडिया। इस प्रकार देखा
जाए तो मौजूदा समय में कार्यरत सबसे पुराना बैंक स्टेट बैंक आफ इंडिया है। लेकिन
एक तकनीकी बात यह भी ध्यान रखने की है कि भले ही स्टेट बैंक आफ इंडिया सबसे पुराना
बैंक है, लेकिन कई नाम बदलने के बाद उसे यह नाम मिला है। जिस नाम से बैंक की
स्थापना हुई, उसी नाम से आज भी कार्यरत सबसे पुराना बैंक है- इलाहाबाद बैंक। इसकी
स्थापना 1865 में कोलकाता में हुई थी। इसके बाद 1881 में अवध कामर्शियल बैंक की स्थापना
की गई। यह ज्वाइंट स्टाक बैंक था। इसके शेयर धारक बनाए गए थे। लेकिन पूर्णतः
भारतीय बैंक की बात करें तो वह था पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबीः। इस बैंक की स्थापना 1894 में हुई थी। इसमें सारे निवेश भारतीय ही
थे। इसके बाद भी कुछ बैंक खुले, लेकिन 1906 के बाद स्वदेशी आंदोलन शुरू हो गए थे,
जो 1911 तक रहे। इस दौरान देश में स्वदेशी आंदोलन से प्रेरित कई बैंक खुले, जिनमें
कैथोलिक सीरियन बैंक, दि साउथ इंडियन बैंक, बैंक आफ इंडिया, कारपोरेशन बैंक,
इंडियन बैंक, बैंक आफ बड़ौदा, केनरा बैंक, सेंट्रल बैंक आफ इंडिया कई प्रमुख थे। लेकिन
प्रथम विश्व युद्ध से लेकर द्वितीय विश्व युद्ध तक भारत में बैंकों की दशा बहुत ही
खराब रही। बैंकों का बड़े पैमाने पर विफल होना जारी रहा। हालांकि बैंकों को बचाने
और उन्हें व्यवस्थित ढंग से चलाने की भी प्रक्रिया इस बीच शुरू हो चुकी थी। एक
केंद्रीय बैंक की जरूरत महसूस होने लगी थी। तब 1926 में हिल्टन यंग कमीशन ने सुझाव
दिया कि इम्पीरियल बैंक से अलग एक केंद्रीय बैंक होना चाहिए, जो विदेशी विनिमय कोष
प्रबंधन के साथ-साथ नोट भी जारी कर सके। इसी कमीशन ने रिजर्व बैंक का आइडिया दिया।
इसके बाद 1934 में रिजर्व बैंक
ऑफ इंडिया एक्ट लाया गया, जिसके जरिये 1 अप्रैल, 1935 से रिजर्व बैंक
ने कार्य करना शुरू कर दिया। वर्ष 1949 में रिजर्व बैंक
का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया और तब से यह भारत का केंद्रीय बैंक है। आजादी के बाद
बैंकों से उम्मीद की जा रही थी कि वे विस्तार कर गांवों और कस्बों तक पहुंचें और
लोगों की आर्थिक जरूरतों को पूरा करें, लेकिन यह तब तक संभव नहीं था, उन बैंकों पर
सरकार का नियंत्रण नहीं होता। इसे देखते हुए 1969 में 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण
कर दिया । इस कदम को और विस्तार देते हुए सरकार ने 1980 में 6 और बैंकों का
राष्ट्रीयकरण कर दिया। 1969 में राष्ट्रीयकृत होने वाले बैंकों में इलाहाबाद बैंक,
बैंक आफ बड़ौदा, बैंक आफ इंडिया, बैंक आफ महाराष्ट्र, सेंट्रल बैंक आफ इंडिया,
केनरा बैंक, देना बैंक (अब बैंक आफ बड़ौदा), इंडियन बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक,
पंजाब नेशनल बैंक, सिंडीकेट बैंक, यूसीओ बैंक, यूनियन बैंक आफ इंडिया, यूनाइटेड
बैंक आफ इंडिया थे। वर्तमान में भात में कुल 19 राष्ट्रीयकृत वाणिज्यिक बैंक हैं। एसबीआई तथा आईडीबीआई बैंक
को मिलाकर कुल 21 सार्वजनिक क्षेत्र
के वाणिज्यिक बैंक हैं। भार में भारत में कार्यरत बैंकों को दो हिस्सों में वर्गीकृत
किया जा सकता है अनुसूचित बैंक (scheduled
bank) और गैर अनुसूचित बैंक (non
scheduled bank)। भारत में कार्यरत अनुसूचित बैंक को को तीन भागों में बांटा
जा सकता है। commercial bank वाणिज्यिक बैंक,
regional rural bank क्षेत्रीय ग्रामीण
बैंक, cooperative bank सहकारी बैंक। अब
पेमेंट बैंक और स्माल फाइनेंस बैंक भी अस्तित्व में आ गए हैं। जैसे एयरटेल
पेमेंट्स बैंक्स लिमिटेड, फिनो पेमेंट्स बैंक लिमिटेड, इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक
लिमिटेड, जिओ पेमेंट्स बैंक लिमिटेड, पेटीएम पेमेंट्स बैंक लिमिटेड, एयू स्माल
फाइनेंस बैंक लिमिटेड, कैपिटल स्माल फाइनेंस बैंक लिमिटेड आदि। कुल मिलाकर भारत
में बैंकिंग प्रणाली लगातार बदलती जा रही है। वह नए जमाने के साथ कदम से कदम
मिलाकर चलने का पूरा प्रयास कर रही है।
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